स्वर्ग की क्या अवधारणा
सुखों का आधिक्य
दुखों का मिट जाना
क्या यही स्वर्ग है
जो मिलता है मरकर ही
सच तो नहीं लगता
नीर के साथ कीच
पुष्पों के साथ कंटक
धूप के साथ छांह
संघर्ष और साफल्य
यही तो जीवन है
बस सुख ही सुख
जीवन तो नहीं
फिर कैसा स्वर्ग कहीं
स्वर्ग तो धरा पर है
कड़वा भी तो मीठा भी
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’