धरती पर स्वर्ग का अनुभव तुमको पाना हो तो…..
वसुंधरा की प्रथम सुननी होगी
तुम्हें पुकार…..
बेहतर इसका भविष्य अपने ही
कर्मों से करना होगा,
हरियाली की इसकी रक्षा को संकल्प
धारण करना होगा।
क्रियाकलापों ने तुम्हारे ही सुंदरता पर इसकी ग्रहण लगाया,
हरियाली को इसकी छीन छीन कर
जीर्ण -शीर्ण आभा विहीन बनाया।
संसाधनों का दोहन कर हर ली
इसकी ऊर्जा सारी,
पोषक तत्वों का हरण कर बना
दिया इसे दुर्बल एवं दुःखियारी।
प्रदूषण से छलनी चहुँओर हो रहा
इसका हृदय स्थल,
ईंधन धधक धधक कर रहा निर्माण
नये नये मरुस्थल।
प्रतिपल अब चिंतन से इस माटी
का उद्धार करो,
वृक्ष लगाओ दिन प्रतिदिन और
रूप पर इसके उपकार करो।
वसुधा पर जीवन को सजाकर रखना अब तुम्हारे ही हाथ है,
धरती को स्वर्ग सा सुन्दर रूपांतरित
करना अब तुम्हारे ही हाथ है।
शैली भागवत ‘आस’