शीर्षक:- दो नाव की सवारी
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मेरी समझ में नहीं आरहा है कि मै तुम्है कैसे सम्बोधन करू। मैने तुम्हारी मेल पढी़ पहले तो आश्चर्य हुआ ? तुम्हें मेरी मेल आईडी कहाँ से मिली? मुझे इसका जबाब तो देना होगा नही तुम मेरी चुप्पी का क्या अर्थ लगालो।
सुमित तो तुम्है आज मेरी याद कैसे आगयी आज पूरे 15 साल होगये हमे अलग हुए। सुमित 15 साल बहुत लंबा समय होता है । तब तो तुम्हें मुझसे बहुत शिकायतें थी। मैं देखने में अच्छी नहीं थी, ़, मेरा वजन भी शायद तुम्हें हमेशा ज्यादा ही लगता, मेरे बाल मुलायम काले लंबे नहीं थे ,मुझे शायद घर रखने का सलीका भी नहीं आता था ।सच इतनी शिकायतें थी तुम्हें मुझसे जिसने मेरा आत्मविश्वास तोड़ के रख दिया था। मैं सब से मिलने में कतराने लगी थी ।मुझे लगता था मैं किसी काम के लायक नहीं हूं ।भगवान ने मुझे क्यों पैदा किया ?मैं शायद धरती पर बोझ थी । तब तुम्है अलका परी नजर आती थी । क्या आज वह अलका भूतनी नजर आने लगी है।
तुम मुझमें कितनी कमियां निकालते थे। तुम कभी भी मेरी बेइज्जती करने से नहीं चूके थे।फिर जब तुम्हारे जुल्म बढ़ने लगे और हम दोनों ने अलग होने का निश्चय कर लिया था। मुझे याद है वह दिन जिस दिन तुम मुझे मायके छोड़ कर आए थे।गाड़ी की पिछली सीट पर सामान भरा था ।मेरा सारा दहेज जो मैं अपने साथ लेकर आई थी। वह सामान कितने दिनों तक मेरी आंखों की किरकिरी बना रहा।
मैं उस रात सो नही सकी थी एक बार तो मैने आत्महत्या करने की सोची थी। क्या उन जागती हुई रातों का हिसाब तुम दे पाओगे !! 15 साल के बाद आज तुम्हें अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है जब तुम्हारी दूसरी पत्नी मरने की कगार पर है ।शायद वह चंद दिनों की मेहमान रह गई है ,तो फिर से मुझे अपनी जिंदगी में वापस पाना चाहते हो !! तुम भूल रहे हो सुमित कि तुमने गलती नहीं की थी तुमने गुनाह किया था । अब भी तो मै बैसी ही हूँ आज मुझमें तुम्है क्या बदला हुआ नजर आरहा है क्या मेरी तनखा ?
क्यौकि आज मैं यहां शहर के जाने-माने कॉलेज की लेक्चरर हूं ।बच्चे मुझे इज्जत की नजर से देखते हैं। कहीं ना कहीं मैं तुम्हें शुक्रिया भी अदा करती हूं ।अगर तुमने मेरी कमियां मुझे ना दिखाई होती ,मुझे इस तरह से तनहा ना छोड़ दिया होता तो शायद मैं कभी अपने पैर पर खड़े होने की कोशिश भी ना करती। वापस से पढ़ाई शुरू ना कर पाती ।पापा के जाने के बाद मुझे जेब खर्च तक की दिक्कत होने लगी थी ।वह दिन मैंने कैसे काटे मैं उन दिनौ को याद भी नही करना चाहती थी तुमने मुझे याद दिलादिये।
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं क्यौकि मै आज जो कुछ हूँ तुम्हारे कारण ही हूँ। शिकायत शायद कमजोर करते हैं जिनके अंदर खुद बहुत सी कमियां होती हैं और उन कमियों को पूरा करने के लिए वह किसी दुर्बल को ढूंढते हैं ।मैं दुर्बल थी । ।तुम्हारी मां पापा को मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं रही ।
तुम्हारे मम्मी पापा मुझे बेटी समझते थे । शिकायतें तो सिर्फ तुमको थी। तुम मुझे एक बेमेल जोड़ा समझते थे। एक जबरदस्ती की की हुई शादी ।तुम मुझे अपने दोस्तों के बीच लेकर नहीं जाते थे और अगर कभी चले भी गए तो मुझे तन्हा छोड़ देते थे ।मुझे वह दिन आज भी याद है जब मै एक फंक्शन में आपके साथ चली गयी थी आप मुझे अकेला छोड़कर अपने दोस्तों के साथ थे जब मै वहाँ पहुची तब तुमने मेरा परिचय भी नही करवाया था।
आज मैं जिस जगह खड़ी हूं , अपनी मेहनत से हूँ गर्व से मेरा माथा ऊँचा है ।मुझे जेब खर्च की अब दिक्कत नहीं है ।मैंने अपना खुद का घर खरीदा है ।मैं 4 बच्चों की फीस देती हूं जो गरीब है जिनके माता-पिता उन्हें पढ़ा नहीं पा रहे थे।उनकी दुआएं मेरे साथ है। मैं अपने जीवन से बहुत खुश हूं ।
मैं तुम्हारा शुक्रिया करती हूं सुमित, तुम्हारे उन सब शिकायतों का, जो तुम्हें मुझसे थी ।तुम्हारा मेल मैंने पढ़ा और उसका जवाब तो मुझे लिखना ही था क्योंकि तुम मेरी जिंदगी में आए हुए वह पहले मर्द थे जिससे मैंने प्रेम किया था ।लेकिन कहते हैं ना एक तरफा प्रेम जहर की तरह होता है जिसे मैंने पिया है और जहर पी के मीराबाई की तरह में जिंदा हूं। मेरा कंठ आज भी नीला है जो मुझे याद दिलाता है उन बीते दिनों की और बीते सालों की,.....
सुमित अपनी पत्नी का ख्याल रखो वह कुछ दिनों की मेहमान है .हर पल उसके साथ रहो बस मैं तुमसे यही कह सकती हूँ। अब दो नावों की सवारी करना छोड़दो। नही तो पछताने के अलावा कुछ हाथ नही आयेगा। अब वक्त को पहचानो।और उसके साथ चलना सीखो। दो नावौ का सवार हमेशा डूब जाता है। अलका की सेवा करो।
सुमित शालिनी की मेल पढ़कर आज से 15 साल पहले की सभी घटनाए उसकी आँखौ के सामने एक एक करके आने लगी। आज उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था। उसने शालिनी को कितना बेइज्जत किया था।जबकि इसमें उसका कोई कसूर नहीं था।
इसके बाद उसने अपनी बीमार पत्नी का अच्छे से खयाल रखना शुरू कर दिया।