” मां आप बस मुझे ही डांटते रहते हो, पिंकी को कुछ नहीं कहते ! “- नाराज़ मिनी ने मां से शिकायत की।मिनी … मिनी सुन तो… मिनी गुस्से में अपने रूम में चली जाती है और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया ।दरअसल मिनी और पिंकी दोनों ही जुड़वां हैं और एक ही चीज पर दोनों का मन अटकता है। करें तो क्या करें? अभी कल ही नई स्कूटी लाकर दी है पापा ने अब उस पर झगड़ा शुरू! बेचारी करूणा रोज़ दोनों का झगड़ा सुलझाने में ही थक जाती थी।
” मिनी पिंकी दोनों सुन लो ये स्कूटी अब मेरी हुई तुम पहले लड़ लो फिर डिसाइड करना किसको कब चाहिए। मैं मार्केट होकर आती हूं…”
करूणा तो स्कूटी लेकर निकल गई।आज वर्षों बाद हाथ में गाड़ी चलाना उसे जैसे मिठी सी ठंडक दे रहा था चाहे बाहर कितनी ही तेज़ धूप थी लेकिन मन भावना भरा मीठे शरबत से सराबोर था। करूणा शादी करके ऐसे बंधन में बंधी थी जिसे तोड़ने का उसने स्वयं कभी प्रयत्न ही नहीं किया। वह अपनी जिंदगी से बहुत खुश थी तो क्या हुआ उसके पास आजादी नहीं थी, उसके पास सबका ढेर सारा प्यार था जो उसने अपने त्याग और बलिदान से जीता था।उसे याद आया वो लम्हा जब पिता ने करूणा को पहली बार गाड़ी चलाना सिखाया और फिर खुद पीछे बैठ गए, उन्हें विश्वास था करूणा पर। उसे वह दिन भी याद है जब करूणा के ससुराल वाले उसे देखने आए थे तब उन्हें करूणा के गाड़ी चलाने पर कोई ऐतराज़ नहीं था, मगर जब शादी के बाद गाड़ी हाथ में ली तो ससुर जी ने गाड़ी ही बेच दी। गाड़ी चलाना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि घर चलाना महत्वपूर्ण है यह मानकर करूणा ने खुद को संभाल लिया।आज इतने वर्षों बाद करूणा ने फिर पंख खोलें हैं, जैसे खुशी का ठिकाना न हो। सैर करके करूणा जब घर लौटी तो मिनी पिंकी बाहर ही खड़ी होकर मां का इंतजार कर रही थी और मां को देखते ही दौड़ गई।
” मां आपको गाड़ी चलाना आती है! वाव ! आपने कभी चलाई क्यों नहीं? “-
दोनों खुशी के मारे उछल पड़ी।
” पहले ये बताओ तुम्हारे झगड़े का क्या हुआ ? “- करूणा ने मस्ती से पूछा।मां गाड़ी तो हम दोनों की नहीं बल्कि तीनों की है ना … मिलकर डिसाइड करेंगे। दोनों बहनों ने अपने हाथों से एक दूसरे के हाथ पर ताली मारी। करूणा भी जैसे जीत गई हो ऐसी खुशी से सराबोर थी। तब तक पापा भी आ चुके थे उन्होंने सब सुन लिया।
दोनों बेटियां भागकर पापा के पास जाती हैं “पापा आप जानते हैं मां को स्कूटी चलाना आती है!”
” हां मैं जानता हूं मैं रास्ते भर तुम्हारी मां के पीछे ही था। करूणा मुझे बहुत खुशी है तुम्हारे चेहरे की वो चमक जो समय ने छीन ली थी वो आज फिर तुम्हारे चेहरे पर है। अब इस चमक को कहीं मत जाने देना। इसके लिए तो मैं तरसा हूं। “
कहते कहते राघव ने करूणा को गले से लगा लिया। दोनों की आंखें भर आईं।दूसरी तरफ दोनों बहनें स्कूटी की तरफ दौड़ी और फिर तनातनी शुरू हो गई, एक बोली मैं आगे बैठूंगी तो दूसरी बोली मैं बैठुंगी।
राघव और करूणा मुस्कुराते हुए अंदर चले जाते हैं।
दोस्तों गृहस्थी में किया गया त्याग और बलिदान अखरता नहीं है तकलीफ़ तब होती है जब कद्र ना हो। कहानी पसंद आई हो तो लाईक, कमेंट करना ना भूलें और मेरे साथ जुड़े रहने के लिए मुझे फोलो अवश्य करें।
आपकी अपनी
( Deep )