जीवन करते नाम देश के,
जिन्हें देख अरि थर्राते हैं।
भारत माता के सैनिक वीर,
देश हित निज सर्वस्व लुटाते हैं।
नहीं देखते माँ की ममता,
माँ भारती की ममता दिखती।
नहीं देखते पत्नी का दिल,
सीमा उनकी राह देखती।
नहीं देखते मौन पिता का,
जब हाहाकार मचा हो युद्ध भूमि में।
नहीं लुभाती तोतली भाषा शिशु की,
जब देश का अभिमान कराह रहा हो।
त्योहार मनाने की लालसा नहीं,
उन्हें रक्त से तिलक लगाना है।
संधान शत्रु का करना है।
विजय शौर्य का जश्न मनाना है।
सैनिक होने का फ़र्ज़ सदा,
भली भाँति निभाते हैं।
सोते हैं हम यहाँ चैन से,
वे सीमा पर डट रात बिताते हैं।
तापमान का भान नहीं,
ठंडी रातों में भी कर्तव्य निभाते हैं।
वर्दी में सज जाते दुश्मन से लड़ने,
ज़बाज़ी ग़ज़ब की दिखाते हैं।
धूल चटा देते हैं अरि को,
विजय का परचम फहराते हैं।
रण में पीठ कभी न दिखलाते,
जान की बाजी लगाते हैं।
हँसते हँसते कुर्बानी देते,
तिरंगे में लिपटे वापस आते हैं।
नमन करते हम उन्हें,
श्री चरणों में शीश झुकाते हैं।
इतनी सारी खूबियों से विभूषित,
सैनिक भारत के कहलाते हैं।
स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’