रेवती को चिंता के साथ साथ बहुत डर भी लग रहा था, डर और चिंता दोनों से ही उसका नाता तभी से जुड़ गया था जब से उसने रोहन के साथ रिश्ता स्वीकार किया ।
वह भली-भांति जानती थी कि एक फौजी की अपनी जिंदगी नहीं होती। उसे पता था कि देश को उसके पति की जरूरत आधी रात को भी पड़ सकती है।
लेकिन कमबख्त दिल है कि सब जानते समझते दर्द में डूबे जा रहा था। फौजी की पत्नी है, यह कहकर आंसू बहाने को भी तो रोहन ने मना किया था। ये बेचैनी और दर्द जैसे उफ़ान पर थे। जो बारिश रोहन के साथ मस्ती में गुज़ारा करती थी आज उसी बारिश में उसका मन घबरा रहा था ।
अभी सात महीने ही तो हुए थे रोहन और रेवती की शादी को। दोनों एक ही कोलेज में साथ पढ़ते थे। वहीं से उनके प्यार का फूल खिला। आज रेवती के गर्भ में नन्हा सा, रोहन का अंश फल-फूल रहा है।
रेवती की सास ने उसे देखा तो वे समझ गईं , पास आकर उन्होंने रेवती के सिर पर हाथ रख कर कहा,
” बेटी, तू रोहन के बारे में सोच रही है ना! पता है रोहन के पापा जब जीवित थे, कारगिल के युद्ध में वे जमकर लड़े । अपने एक साथी को बचाते बचाते उन्हें भी गोलियां लगी। एक नहीं सात, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी वे अपने साथी सैनिक को अपने कांधे पर उठाकर सुरक्षित जगह ले आए। उस सैनिक की जान तो बच गई पर तुम्हारे पिताजी शहीद हो गए। जब उनके पार्थिव शरीर को ताबूत में लेकर उनके साथ वे ही सैनिक आए तो उन्होंने मुझसे उनका संदेश कह सुनाया कि तुम्हारे पिताजी चाहते थे कि जिस तिरंगे में लिपट कर आएंगे उसी तिरंगे को मैं अपना सुहाग मानूं और जिस तरह भारत अमर है उसी तरह मैं स्वयं को सदा सुहागन ही मानूं और जब वो कहीं गए ही नहीं तो आंसु किसलिए !”
” रोहन के पिताजी कि यह बात याद करके ही मैंने रोहन को देश की सेवा में सौंप दिया। उसमें अपने पिता की सारी खुबियां झलकती हैं। “
कहते कहते मां गंभीर हो गई !” मां रूक क्यों गई आप बोलते रहिए मेरे मन को धिरज मिलता है। “
” बेटी देश को जब कोई औरत अपना बेटा या पति सौंप देती है तो उस औरत को बस यही प्रार्थना करनी चाहिए कि उसके देश पर आंच ना आने पाए। क्योंकि सिपाही देश का होता है किसी एक का नहीं। “
रेवती मां के गले लगकर फुट फुट कर रोने लगी, और बोली,
” मां इस दिल का क्या करूं कैसे समझाऊं!”” एक बहादुर वीर सैनिक की पत्नी को इस तरह कमजोर नहीं होना चाहिए, हिम्मत रख बेटी। मेरा तो एक ही बेटा है ना, फिर भी मैंने देश की सेवा में दे दिया। ऐसे कई परिवार है जो अपनी सन्तान को देश के लिए न्योछावर कर चुके हैं अगर सभी हिम्मत हारने लगे तो कुछ सोचा है , क्या होगा बेटी ।”
तभी रोहन के शहीद होने की खबर आती है। मां की आंखों से ना आंसू निकल सके ना कुछ बोल सकी । रेवती ने दौड़ कर रोहन की तस्वीर को गले से लगा लिया और जैसे वो चिखना चाहती थी मगर आवाज हलक में ही रह गई ।
रेवती ने रोहन की तस्वीर देख कर कसम खाई कि वह भी सेना में भर्ती होगी और दुश्मन से लोहा लेकर अपने देश की रक्षा करेगी जैसा कि रोहन ने किया। उसने मां को भी संभाला और फिर रेवती के गर्भ में स्थित ५ महीने की वह नन्ही सी जान उन दोनों के जीने का एक मक़सद बन गई थी।
दोस्तों मैं इस रचना को प्रस्तुत करके कुछ साबित तो नहीं करना चाहती पर एक शहीद अकेला शहीद नहीं होता उसके पीछे परिवार के अरमान भी शहीद होते हैं। देश को ऐसे वीरों पर नाज़ है । जय हिन्द जय हिन्द की सेना ।
धन्यवाद
आपकी अपनी
( Deep )