खेल खिलौने दुनियां के
न कोई दिल बहलाने का सामान है
मिट्टी से बने हैं बेशक
न मिट्टी के खिलौने न उसके समान है
स्त्री होना सुन ए दुनियां
बिल्कुल भी न समझना आसान है
कठोर तपस्या है जीवन
हर दीन जैसे उठता कोई तूफ़ान हैं
कठोर हूं मैं पाषाण सी
पुष्प सी फिर भी मेरी पहचान है
जानें कहां से लाऊं वो दिल
जो माने राम (पति)आज भी महान है
खेला रौंदा फिर फेंक दिया
स्त्रीत्व का न कोई तुझे ध्यान हैं
हर दिल में खौफ पैदा कर देगे
सुन,,, दिन वो दूर न दूर अब वो रात हैं
रेणु सिंह ’राधे ’
कोटा राजस्थान