यह वह समय था जबकि सारे छात्र व छात्राएं अपने कैरियर के विषय में गहराई से विचार कर रहे थे। अपने अपने प्रोजेक्टों को अंतिम रूप दे रहे थे। आखरी सैमिस्टर के विषयों को गहराई से पढ रहे थे। विभिन्न कंपनियों में साक्षात्कार कर भविष्य के लिये नौकरी भी सुरक्षित कर रहे थे। फिर भी जानते थे कि सुरक्षित नौकरी उन्हें तभी मिल सकती है जबकि अंतिम सैमिस्टर में भी वे सफलता का परिचम लहरायें। जिस अंतिम सैमिस्टर पर उनका पूरा भविष्य निर्भर था, उस अंतिम सैमिस्टर को हलके में लेना घातक ही होता। कई बार हाथी निकल जाने के बाद भी पूंछ अटक जाती है। जरा सी लापरवाही पूरे कैरियर पर भारी पड़ जाती है।
ऐसे नाजुक समय में प्रवेश चिंता के सागर में डूब रहा था। शिवानी की याद में तड़प रहा था। भूल रहा था कि अभी उसका पूरा कैरियर तैयार नहीं है। इस समय की लापरवाही बहुत भारी पड़ सकती है। उसके सारे सपने मिट सकते हैं।
यथार्थ में तो सच्चा प्रेम उसी समय होता है जबकि मनुष्य अपने विचारों में दृढ हो जाये। किशोरावस्था के मन की चंचलता को पार कर जाये। गहराई से और विवेक से विचार सके।
प्रवेश का शिवानी के विषय में चिंता करना सही भी था। आखिर दोनों इतने वर्षों से एक दूसरे को प्रेम करते हैं। प्रवेश का इंजीनियरिंग में प्रवेश लेना भी तो शिवानी की इच्छा थी। शिवानी की इच्छा को खुद की इच्छा मान उसने दिन और रात इंजीनियरिंग की पढाई में लगा दिये। उन सपनों को भी चकनाचूर कर दिया जो कि वह अपने संस्कारों के कारण बचपन से देखा करता था। अपनी माॅ के स्वप्नों को भी उसने ध्वस्त कर दिया था। आज भी उसका वह टूटा हुआ सपना उसे याद दिलाता है कि वह कुछ अलग है। उसके जीवन का उद्देश्य कुछ अलग है। वह केवल ऐशोआराम की नौकरी के लिये नहीं बना है। वह राजीव और संध्या का पुत्र है। उसके माता-पिता का खून अक्सर उफान भरता जिसे वह अपने प्रेम के आवेश में रोकता रहता। शायद प्रवेश भूल रहा था कि संस्कारों को धोखा दे पाना आसान नहीं है।
अभी तक सब उसी हिसाब से हो रहा था जैसा कि शिवानी चाहती थी। पर शिवानी की चाहत को पूरा करने के लिये भी अभी अंतिम तैयारी आवश्यक थी। सच्ची बात थी कि अब अंतिम तैयारी में प्रवेश कमजोर पड़ रहा था। उसका प्रोजेक्ट भी कुछ अधूरा था।
हालांकि उसके प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी उसके साथ दो अन्य लड़कों की भी थी। पर जैसा हमेशा होता रहा है, प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी केवल उसी की बन जाती है जो सबसे ज्यादा होनहार छात्र रहा हो। प्रवेश तथा उसकी टीम का प्रोजेक्ट आखरी समय पर अपने परिणाम को तलाश रहा था। पर इस समय प्रवेश का मस्तिष्क अनेकों पुरानी यादों से पार नहीं पा रहा था।
इस समय प्रवेश का अधूरा प्रोजेक्ट अचिंत्या पूरा कर रही है। अचिंत्या जो कि प्रवेश की बचपन की साथी रही है, जो कि उसके और शिवानी के विषय में सब कुछ जानती है, जो एक मेहनती छात्रा है, नहीं चाहती है कि आखरी समय में प्रवेश का प्रोजेक्ट अधूरा रह जाये। एक तरफ उसका खुद का प्रोजेक्ट तथा दूसरी तरफ प्रवेश का एकदम अलग प्रोजेक्ट। दोनों प्रोजेक्ट के लिये अलग अलग तरीके की तैयारी। फिर भी अचिंत्या चुपचाप कर रही है। क्या केवल दोस्ती के लिये। शायद नहीं। शायद यह वह गुप्त प्रेम है जो कि केवल उसके मन में कैद है। प्रेम जो कभी मांगता नहीं है, शर्तों में बांधता नहीं है, हमेशा आगे ही बढाता है।
प्रवेश का प्रोजेक्ट पूरा हो पाया तो बस अचिंत्या के कारण। प्रवेश एक बार फिर से अपने अध्ययन पर ध्यान दे पाया तो बस अचिंत्या के बार बार समझाने के कारण। तथा अपने संस्कारों की बात सुन प्रवेश आर्मी के साक्षात्कार में गया तो भी केवल अचिंत्या के कहने से। जब अचिंत्या ने उसकी इतनी मदद की है तो उसकी एक बात तो माननी चाहिये। हालांकि यही तो उसके और शिवानी के प्रेम की वह नाजायज शर्त थी। जिसके लिये प्रवेश ने पहले भी अपनी माॅ को धोखा दिया था। शिवानी नहीं चाहती कि प्रवेश आर्मी जोइन करे। इसलिये माॅ द्वारा एन डी ए की परीक्षा उत्तीर्ण करने भेजने पर भी वह परीक्षा में कुछ खास नहीं करके आया। जिन प्रश्नों को वह जानता था, उन्हें भी उसने हल नहीं किया। इस तरह आर्मी में अधिकारी बनने के स्थान पर शिवानी की योजना के अनुसार वह इंजीनियर बनने आ पाया।
एन डी ए के अतिरिक्त भारतीय सेना इंजीनियरिंग कालेज के अंतिम वर्ष के छात्रों का भी कैंपस से चयन करती है। अनेकों छात्र जिनका विभिन्न कंपनियों द्वारा चयन नहीं हुआ था, एक बार फिर से अपने भविष्य के लिये आर्मी के चयन बोर्ड के सामने उपस्थित थे। वहीं आज अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था प्रवेश। दुनिया गोल है। एक बार फिर से उसके संस्कार उसे पुकारने लगे।
आज उसके साथ आयी है अचिंत्या। जिसकी बात टालने की स्थिति में वह खुद को नहीं पा रहा है। वैसे भी अचिंत्या ने उसकी इतनी मदद क्यों की। जबकि वह उसके और शिवानी के विषय में सब जानती है। शायद वह भी चाहती है कि उसका प्रेम पूर्ण हो।
प्रवेश के साक्षात्कार का नंबर आ गया। अब प्रवेश साक्षात्कार के लिये कक्ष के भीतर जा रहा है। जाने से पूर्व अचिंत्या ने एक बार उसे बेस्ट ओफ लक बोला। फिर धीरे से कान में कहा।
” प्रवेश। एक बार मेरे कहने से इस साक्षात्कार को गंभीरता से दे देना। फिर चाहे आर्मी जोइन मत करना। मुझे संतोष हो जायेगा कि आपने मेरी एक बात मान ली।”
अचिंत्या को बायदा कर जब प्रवेश साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश कर रहा था, उस समय वह जानता नहीं था कि इस समय वह अपने संस्कारों के सपने पूरे करने जा रहा था। शायद यह भी नहीं जानता था कि उसके प्रेम ने उसे धोखा दे दिया है। वह यह भी नहीं जानता था कि अचिंत्या इस समय अपनी दोस्ती से ऊपर अपने प्रेम का ही परिचय दे रही है।
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’