अस्पताल में रहकर इलाज कराना कस्तूरी देवी को पसंद न था। जब भी  संध्या उसे अस्पताल में भर्ती कराती, वह रो रोकर हालत खराब कर लेती। दूसरे मरीजों को भी दिक्कत होती। अस्पताल का पूरा स्टाफ परेशान होता। शायद डाक्टर भी समझ चुके थे कि ऐसी स्थिति में कोई कारगर इलाज संभव भी नहीं है। जीवन के ऐसे मोड़ पर अधिकांश लोग अवसादग्रस्त हो जाते हैं। मानसिक रूप से कमजोर पड़ने लगते हैं। सच्ची बात तो यही है कि किसी भी व्यक्ति को दवाएं पूरी तरह स्वस्थ नहीं करती हैं। उसकी मानसिक स्थिति भी असर करती है। मन में दृढ इच्छाशक्ति होने पर मनुष्य अजेय बीमारियों को भी हरा देता है। 
  कस्तूरी देवी के मन में उनका पुत्र प्रेम बढता जा रहा था। जिस मनोज ने उन्हें दर दर की ठोकर खाने के लिये छोड़ दिया था, दिन और रात उसी के नाम का जाप करने लगी। संध्या पर अनेकों तरीकों से भावनात्मक दबाव डालने लगी। पर अब संध्या अविचल रही। 
   अंतिम समय की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्ति की भावनाओं की कद्र प्रायः सभी करते हैं। ऐसे में संध्या की कठोरता निश्चित ही आलोचना का विषय थी। ऐसी हालत में आखिर एक दिन जानकी देवी ने भी संध्या को टोक दिया। कुछ नहीं तो माॅ की अंतिम इच्छा समझ भाई की जमानत करा दे। ठीक है कि भाई के लिये मन में बहुत गुस्सा भरा है। पर मौके की नजाकत तो समझनी चाहिये। यह समय गुस्सा दिखाने का नहीं है। इस समय में तो दुश्मन से भी दुश्मनी छोड़ देनी चाहिये। 
   संध्या जानती थी कि सासू माॅ की बात सही है। फिर माॅ के मन में तो हमेशा से बेटे के लिये ही प्रेम है। बेटी को तो वह हमेशा से पराया मानती आयी थी। पर प्रश्न था कि क्या मनोज और ज्योति पर विश्वास किया जा सकता है। हर बार उत्तर नकरात्मक ही आता। 
  संध्या ने एक बार फिर से सासू माॅ को समझाने का प्रयास किया। सुलझाने पर अक्सर डोर ज्यादा उलझती ही है। बच्चों और बुजुर्गों को समझाना बहुत कठिन होता है। यदि उनसे वास्तव में प्रेम हो तो दोनों ही अपनी बात मना पाने में सक्षम होते हैं। 
  आखिर संध्या के प्रयासों से मनोज और ज्योति की जमानत हुई। पर जिस कारण से उसे जमानत दिलायी गयी, उस काम के लिये मनोज के मन में कोई भी उत्साह न था। जब दोनों गिरफ्तार हुए थे, उस समय वे संध्या से अनुरोध कर रहे थे कि अपने प्रभाव से उन्हें बचा ले। अब वे जमानत के बाद उसकी मजाक ही बनाने लगे। नहीं नहीं।हमें माॅ से और आपसे कोई मतलब नहीं है। यह जमानत तो हमारी आजादी की शुरुआत है।हर कुत्ते का भी एक दिन होता है। आज हमारा दिन है। 
  जो इतने खतरनाक तेवर मुख से व्यक्त कर सकता है, उसके वास्तविक इरादे और खतरनाक ही होंगें। संध्या के लिये यह अज्ञात न था। इस समय संध्या दुहरी भूमिका निभा रही थी। वास्तव में लग रहा था कि उसने अपनी सास के कहने से अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिये उन्हें आजाद कराया है। पर सत्य तो यही था कि दोनों को एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी संध्या ने आजाद कराया था। जिसके लिये उसका परिवार भी हमेशा फर्ज से पीछे ही रहता था। 
   जमानत से आजाद होकर फिर मौका देखकर दोनों चंपत हो गये। कस्तूरी देवी और जानकी देवी दोनों ही रो रही थीं। कस्तूरी रो रही थी पुत्र प्रेम में। ऐसी स्थिति में जबकि मनोज ने फिर से संध्या को धोखा दिया था, कस्तूरी संध्या पर आरोपों के तीर छोड़े जा रही थी। लड़की बचपन से ही अपने भाई से नफरत करती आयी है। बेचारे लड़के का कभी साथ नहीं दिया। माना कि भाई जरा बुद्धि से कमजोर था। बेचारे की सरकारी नौकरी नहीं लग पायी। तो क्या भाई की मदद नहीं कर सकती थी। भाई और बहनों के पवित्र प्रेम की गाथाओं बाले हमारे देश में ऐसी बहनें भी हैं जो कि अपने ही भाई को जेल पहुंचा सकती हैं। यह गलत है कि मेरा मनोज कहीं भाग गया है। अरे भाई से जलन करने बाली। यह तेरा ही काम है। हाय मनोज। अंतिम यात्रा की तैयारी में बैठी माॅ की अंतिम यात्रा से पूर्व ही कहीं तुम अपनी ईर्ष्यालु बहन के कारण खुद ही तो अंतिम यात्रा पर तो नहीं चले गये। अरे दुष्टा। सच सच बता। मेरा मनोज अब कहाॅ है। इस दुनिया में है अथवा कहीं….. ।
   दूसरी तरफ जानकी देवी रो रहीं थी। आखिर उन्हीं की आज्ञा मान संध्या ने मनोज और ज्योति की जमानत करायी थी। मेरे कारण बेटी को परेशानी आयी। बेटी मैं तो मूर्ख हूं।तुम समझ रहीं थी। मेरा क्या। मैं चार दिन नाराज रह लेती। मुझे माफ करो बेटी। 
   कर्तव्य निभाना अलग बात है। पर दिल की बात उसी को कही जाती है जो सच्चा स्नेह करता हो। वैसे तो संध्या के साथ कस्तूरी और जानकी दोनों ही रह रहे थे। दोनों ही संध्या के लिये माॅ के बराबर ही थीं। पर स्नेह के बंधन के कारण निश्चित ही जानकी देवी संध्या की अधिक घनिष्ठ थीं। वह उन्हें अधिक देर धोखे में नहीं रख सकती थी। अपनी सासू माॅ की आंखों से संध्या ने आंसू पोंछे। अपनी आंखों में गुप्त मुस्कान बखेर संध्या ने अपनी सासू माॅ को संकेत दे दिया कि वह किसी भी परेशानी में नहीं है। 
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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