जिंदगी की दौड़ में इंसान क्या क्या कुकर्म नहीं करता है। अपने पाप को मजबूरी का नाम देता रहता है। एक दिन वही जीवन उस मनुष्य का साथ छोड़ने लगता है। ज्यादातर तो उस समय भी अहंकार में इस कदर डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने कुकर्म याद नहीं आते। पर कुछ पर ईश्वर की कृपा बन जाती है। वे अंतिम समय में पश्चाताप की अग्नि में जलने लगते हैं। उस अग्नि में जलते हुए वे ईश्वर से जीवन की इतनी भीख मांगते हैं कि एक बार अपने पापों का पश्चाताप कर सकें। जिसका अधिकार कभी दुष्ट बुद्धि से छीना था, उसका अधिकार दे पाने की हैसियत तो नहीं रही पर उसके चरणों में गिरकर अपने पापों की माफी तो मांग ही लें। ईश्वर भी सच्चे दिल से की गयी ऐसी प्रार्थनाओं को सुन लेते हैं। फिर अनेकों कष्ट सहन करने के बाद भी उस मनुष्य के शरीर से प्राण नहीं निकलते। प्राण वास्तव में अपने उद्धारक की प्रतीक्षा में शरीर से चिपके रहते हैं। 
   संध्या के पिता रामदास अनेकों वर्षों से ऐसी स्थिति में जिंदा थे। जिस जिंदगी की अपेक्षा मौत अधिक आसान होती, ऐसी नारकीय जिंदगी जी रहे थे। पता नहीं कौन सी जिजीविषा उनके शरीर से प्राणों को निकलने न देती। 
   मनोज और ज्योति जब उन्हें असहाय छोड़कर चंपत हुए थे, उसके बाद कुछ समय रामदास ने थोड़ा मेहनत का काम किया। पर शायद मेहनत उनके वश में न थी। जल्द ही उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। यह अच्छा था कि रहने के लिये एक छोटी सी झुग्गी पल्ले पड़ गयी। तथा कस्तूरी देवी को कुछ घरों में झाड़ू पोंछा करने का काम। 
   कस्तूरी देवी सुबह काम पर निकल जाती और रामदास अज्ञात बीमारी के दर्द में चीखता रहता। ऐसे दर्द में अक्सर लोग मौत की कामना करते हैं। पर रामदास की चीखों में हमेशा संध्या का ही नाम होता। लगता है कि रामदास के शरीर से प्राण संध्या को देखे बिना न निकलेंगे। 
  गरीबों की बस्ती के अधिकांश की नजर में कस्तूरी देवी माता सावित्री का अवतार थी। खुद मेहनत करके भी अपने पति का जीवन यापन कर रही है। हालांकि कस्तूरी देवी के मन में शायद वह बात न थी ।हालांकि मंहगा इलाज कराना वश में न था फिर भी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज होता है। अपने पति की मृत्यु की प्रतीक्षा में आवश्यक कर्तव्यों को भी भुलाया जा रहा था। जल्द बीमार पति से आजाद होने की आशा थी। इस अवस्था में भी उसके मन में कोई ग्लानि न थी। पति की तड़प के साथ बेटी के नाम की पुनरावृत्ति उसके मन के क्रोध को ही भड़काती थी। खुद के कृत्य तो याद न थे। जितना रामदास बेटी का नाम लेते, उतना ही वह बेटी को कोसती जाती। 
  इस बुरे समय में भी कस्तूरी देवी के मानस पर मोह का वह पर्दा पड़ा था जिसे हटा पाना किसी भी मनुष्य के वश में नहीं है। ऐसा तो तभी संभव है जबकि ईश्वर की महती कृपा हो।
   एक दिन कस्तूरी देवी काम से वापस आयी तो मोहल्ले के बच्चों ने उसे घेर लिया। क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता। वैसे भी गरीब लोग पुलिस से ज्यादा ही डरते थे। गरीबी के कारण इनमें से कुछ आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त थे। जिनकी दबिश में अक्सर पुलिस आती रहती थी। पुलिस की गाड़ी देख सभी अपने घरों में दुबक जाते थे। बाद में पता चलता था कि पुलिस ने किसे उठाया है। 
   आज भी मोहल्ले में पुलिस आयी। एक मरणासन्न आदमी को पुलिस ले गयी तथा किसी की भी हिम्मत कुछ पूछने की न थी। वैसे इस बस्ती में अनेकों पुराने अपराधी भी थे। लगता है कि रामदास भी कोई पुराना अपराधी है। शायद पुलिस से भागा हुआ। आज पुलिस की पकड़ में आया है। 
   कस्तूरी देवी को भी उन्होंने इसी लिये सावधान किया। यदि वह भी कोई पुरानी अपराधी है तो चुपचाप कहीं भाग जाये। पर भागने से भी क्या होगा। पुलिस ने तो नाकाबंदी कर दी होगी। 
  कस्तूरी समझ न पायी। आज उसे लगा कि शायद मनोज का कोई और कुकर्म सामने आ चुका है। मनोज को तलाशने के चक्कर में ही पुलिस ने उसके पति को उठाया है। पहली बार कस्तूरी देवी ने मनोज को जी भरकर गाली दी। फिर अपने पति को छुड़ाने थाने की तरफ भागी। वहां रामदास तो नहीं मिले। पर पुलिस उन्हे भी गाड़ी में बिठाकर कहीं ले चली। 
   सामने एक प्रतिष्ठित प्राइवेट अस्पताल था। उसी के एक कमरे में रामदास भर्ती थे। डाक्टर उनका परीक्षण कर रहे थे। तथा उनके सामने थी उनकी बेटी संध्या। दोनों पिता और बेटी एक दूसरे को देख रहे थे। दोनों की आंखे ही आंसुओं से भरी हुई थी। 
   इन्हीं आंसुओं की बारिश में कस्तूरी देवी के भी आंसू मिलने लगे। लगता है कि इन आंसुओं की बारिश में सभी के मन का पुराना मैल बह जायेगा। लगता है कि शायद अभी रामदास के पास उनका जीवन है। तभी तो उनकी बेटी ने उन्हें उचित समय पर अस्पताल में भर्ती कर दिया है। 
  संभावना यह भी है कि शायद जिस पश्चाताप की अग्नि में अभी तक रामदास जी जल रहे थे, अब उनकी बेटी की आंसुओं की बाढ में वह अग्नि ही शीतल होती जा रही है। लगता है कि रामदास भी अपने आंसुओं से अपनी भूल का पश्चाताप कर रहे हैं। फिर जिस कारण से उनके प्राण उनके शरीर को नहीं छोड़ रहे थे, अब वैसी कोई बात नहीं है। 
   माना जा सकता है कि कस्तूरी देवी की आंखों से भी पश्चाताप के आंसू बह रहे हैं। पर संभावना यह भी है कि कस्तूरी देवी की आंखों से जो आंसू बह रहे हों, वह किसी चतुर मगरमच्छ के आंसू हों। वैसे भी इस समय कस्तूरी देवी के पास संध्या से संबंध सुधारने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। 
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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