दुख……
उसने कहा था….
दुःख कितना ही गहन हो
कविताओं की हथेली पर
रख देना…
तो धीरे- धीरे उड़ जाता है
कपूर की किसी टिकिया सा…!!
पर वो हथेलियों में
हमेशा महकता रहा
किसी अदृश्य मलाल सा
या तलुए की फटी
किसी बिबाई में जमा सा….!!
तब मैंने जाना ….
नहीं उड़ता…..
कभी नहीं….
डॉ0 अजीत खरे
18/11/2023