बहुत पुरानी इक बात सुनी है!
दादी नानी के किस्सों में मिलती है,
जब भी होती बातें कोई खुफिया,
चिल्लाना नहीं, धीरे बोलो, यही कहती गुईंयां,
बच्चे, बूढ़े या हों जवान, रहते हैं सब सावधान,
बात ना हो जाए कोई इधर-उधर
क्योंकि घर की दीवारें भी नहीं है सुरक्षित
कहते हैं दीवारों के होते हैं कान!
सुन लेतीं हैं वो, जो नहीं सुनना होता बिना काम!
पर कान कहीं नहीं दिखते उनके,
वो तो खड़ी रहती निश्छल बनके,
ये काम है उन लोगों का, जिनको पसंद नहीं है एका 
छुप-छुप कर सुनते बातें, फैलाते नफरत का रौपा,
ना करो बुराई किसी की, ना करो बेइमानी कभी,
ना करो बदनाम किसी निर्दोष को, ना सुनो बात जो हो ना मानने वाली,
सदा ही रहो और रखो खुशहाल सभी को,
खुद भी जियो और औरों को भी जीने दो,
दीवारों के कानों की ना सुने,स्वयं पर करें विश्वास।
© मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश
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