धीरे धीरे बात कहो तुम,
दीवारों के भी कान है,
जानी पहचानी हर ईंट है,
इन ईंटों से ही मकान है।
भाप जाते हैं राज़ सभी,
ना अपने रहते अंजान हैं,
बाल की खाल सब निकाले,
बैठे यहाँ समझदार इंसान हैं।
धीरे धीरे बात कहो तुम,
दीवारों के भी कान हैं।
झूठ का बखान करते बहुत,
दिखावा समझते शान हैं,
गिराने को बैठे एक दूजे को,
भूल गए समय बलवान है।
धीरे धीरे बात कहो तुम,
दीवारों के भी कान हैं।
पूजा पीहू
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