आए दिन लोगों में झगड़े तमाम होते हैं
अब समझ में आया कि दीवारों के भी कान होते हैं
मन के भेद कभी ना खोलो
सोच समझकर ही कुछ बोलो
हर कोई होता नहीं है अपना
राज सभी ना दिल के खोलो
अपने बनकर सब टटोलते
मुंह पर सब मीठा ही बोलते
समझ नहीं पाओगे कोई
कैसे फिर ये जहर घोलते
स्वार्थ सिद्ध करते सब अपना
पूरा करते अपना सपना
आस्तीन में पलते हैं जो
सबसे पहले डसते हैं वो
सावधान रहिए उन सब से
साथ में रह कर ठगते हैं जो
प्रीतिमनीष दुबे
मण्डला मप्र