आज दिग्भ्रमित युवा हो रहे देख देख,
कर दूसरों की वो जिंदगी आलीशान।
मेहनत एवं संघर्षो का उन्हें पता नहीं,
बाप के दौलत पर बघारें शेखी शान।
कितना किया पिता ने कड़ा परिश्रम,
तो शायद यह सुख का दिन है आया।
कितनी मेहनत की होगी उन्होंने तब,
कितना बहा पसीना थकन है आया।
ये दिग्भ्रमित युवा हैं अपने ही देश में,
रोजगार व्यवसाय खोजते परदेश में।
भूल बैठे हैं अपने अंदर का दमखम,
कर रहे शिकार भेड़िये आके देश में।
पश्चिमी सभ्यता देखके युवा वैसे ही,
आज रहना करना जीना वही चाहें।
अपनी संस्कृति एवं सभ्यता देश की,
बिल्कुल भी वह अपनाना नहीं चाहें।
अपने मन के मर्जी पर है वह चलता,
बड़े बुजुर्गों की एक भी बात न मानें।
दिग्भ्रमित युवा बहकावे में आ जाते,
लालच में जल्दी आके बात वे मानें।
गुस्से में रहते हैं ज्यादातर दिग्भ्रमित,
सबसे बड़ी खराबी आज युवाओं में।
नहीं सोचता भला स्वयं एवं राष्ट्र का,
उत्तेजना बढ़ गई है आज युवाओं में।
निर्धारित लक्ष्य पाने को तड़पडता है,
ये पैसा ही जल्द कमाना है मकसद।
सच्चे रास्ते से आये या गलत राह से,
जल्दी धनवान बन जाना है मकसद।
कुछ पाने के लिएकुछ खोना पड़ता,
मेहनत जुनून लगन से करना होगा।
रचनात्मक आत्मविश्वास और दृढ़ता,
पथ नेक सृजनात्मक पकड़ना होगा।
दिग्भ्रमित ना हों सही रास्ते पर जाएं,
अच्छे पालन पोषण संस्कार न खोएं।
राष्ट्रीय संपत्तियां नष्ट करने नहीं जाएं,
ऐसे कुछ न करें कि जिंदगी भर रोएं।
राजनीति राजनीतिज्ञों के षड्यंत्र पर,
आँख मूँद विश्वास कभी मत करना।
तुम्हें मिलेगा क्या?सोचो षड्यंत्रों पर,
एक नहीं सौ बार सोचना तब करना।
दिग्भ्रमित युवा ही दंगा फसाद करते,
बहकावे में आके कैरियर नष्ट करते।
पत्थरबाजी और आगजनी भी करते,
सजा भोगते मुकदमें भी लड़ा करते।
खुद संभलो -संभालो दिग्भ्रमितों को,
जिस देश में रहते हैं वो है माँ भारती।
संकल्प करें नेक रास्ते चलना हमको,
इसकी कद्र करें हमेशा उतारें आरती।
इन दिग्भ्रमित युवाओं से मेरी अपील,
अबतक ठोकर बहुत खा चुके सुधरो।
निज सोच बदलें राष्ट्रीय धारा से जुड़े,
बिगडों को सुधारें एवं स्वयं भी सुधरें।
वंदे मातरम वंदे मातरम वंदे मातरम,
जय माँ भारती जय जय माँ भारती।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.