लिखने बैठी जब दास्तां अपनी तो कागज भी आंसू बहाने लगे,
दर्द की दास्तां ही थी कुछ ऐसी, कि एक-एक लफ्ज मुझको रुलाने लगे!
खुशी से ना रहा दूर दूर तक का रिश्ता,दुख हरपल हाथ थामे रहे,
समझ कर किस्मत का खेल,हरपल हम मुस्कुराते रहे!
थकने लगे जब थपेडे सह सहकर जिन्दगी के जुल्मो के,
तो कतरा कतरा जिन्दगी को बिताने लगे,
देख कर हालात मेरे लोग मुझपर मुस्कुराने लगे!
समय ने ली करवट और दुनिया बदनसीब की भी आबाद होने लगी,
एक लंबी पतझड के बाद,बगिया मे उसके भी बहार आने लगी!
खुशियो से उसकी रंज रखने वालो को दर्द दिल मे होने लगा,
खुशिया देख उसकी, एक एक रिश्ता दूर उससे होने लगा!
देख खिलखिलाहट उसकी,अब वो आंसू बहाने लगे!
सच ही कहा है किसी ने कि लोग अपने दुख से नही दूसरो की खुशियो से दुखी है,
अल्फाज ये अब मुझको समझ आने लगे!
लिखने बैठी जब दास्तां अपनी तो कागज भी आंसू बहाने लगे!
श्वेता अरोडा