दास्तां अब हम लहू से, लिख रहे हैं किसकी।
तस्वीर हम अपने लहू से , बना रहे हैं किसकी।।
दास्ताँ अब हम लहू से————।।
क्यों हमको चैन नहीं है, हसरत क्या है अब बाकी।
यह धुंआ क्यों उठ रहा है, नफरत क्यों है अब बाकी।।
जिंदगी अब हम लहू से, सजा रहे हैं किसकी।
दास्ताँ अब हम लहू से————।।
टुकड़े क्यों इस जमीं के , कर रहे हैं हम यारों।
अपने खुदा को क्यों हम, बांट रहे हैं यारों।।
करके लहू हम यूँ ,मंजिल जा रहे है किसकी।
दास्ताँ अब हम लहू से————।।
अश्क भरकर आँखों में, करो याद उनको जरा तुम।
जिनकी बलिदानी के दम पर, जी.आजाद है आज हम।।
अब आजादी हम लहू से , यहाँ चाह रहे हैं किसकी।
दास्ताँ अब हम लहू से —————-।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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