ये दवाई अब जीने का एक सहारा बन गई है,
ना चाहते हुए भी हर रोज इसे लेना पड़ता है,
फंस गए हैं इस कदर मानव की इस जहरीली दुनिया में,
खाना छोड़ जाए पर दवाई छोड़ी ना जाती है,
पेड़ के पत्तों से हो या फल के छिलके से हो,
समंदर की गहराई से हो या सांप के जहर से हो,
बन जाती है दवाई अब, दुनिया के भले के लिए,
मकसद एक ही है की तुम सलामत रहो,
सर से लेकर पैर तक हर बीमारी का अब इलाज है,
जिसको आसान करने के लिये दवाई की एक गोली ज़रूरी है,
बड़ी से ब़ड़ी बीमारी ठीक हो जाती है,
जब छोटी छोटी दवाई पेट के अंदर जाती है,
पुरानी प्रथा गई, अब नई प्रथा आई है,
एक ही झटके में लाखों दवाई तैयार है,
बच्चों से बड़ों तक सब निर्भर करते हैं,
जब रोग की चपेटे में आ जाते हैं,
बेशक दवाई अच्छी रोग भगाने को है,
पर ज़्यादा इस्तमाल भी जानलेवा है,
जितना चाहे कम इस्तमाल करो,
खाओ पियो व्यायाम करो,
दवाई को अलविदा कहो,
जब बढ़ जाए इसकी ज़रूरत,
सिर्फ तभी इस्तमाल करो,
डॉक्टर जी की सलाह लो,
खाने के साथ दवाई लो….
ज्योति महापात्र
ओडिशा
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