जब जब वीरों की कुर्बानी से वशुन्धरा विभुषित होगी 

दिग्गज डगमग हो डोलेंगे, गाथा स्वर्णिम निर्मित होगी 
जननी का होता अहोभाग्य! जिसने सुत ऐसा जन्म दिया
भारत की लाज बचाने को  भारत माता को सौंप दिया 
भारत माँ की रक्षा में जो नतमस्तक हो कर जीते हैं 
अमरत्व प्राप्त होता उनको यह अमर सुधा जो पीते हैं 
हो देश प्रेम का जज्बा तो जीवन साधक बन जाता है
बाधक बनता है गर कोई जो मिट्टी में मिल जाता है 
मलयानिल वायु सुवासित है मनहरने वाली आभा सी 
हृदयंगम जननी जन्म भुमि पावन अवनी की अभिलाषी 
धरती के कण कण में सोना बरसाती आवेशित मेघा 
तरु के उपवन में छाई है मकरंद सुरभि सी जिज्ञासा 
भारत माँ की गोदी पाकर आह्लादित होता अन्तर्मन
ध्वज तीन रंग का अमर हुआ अंतर में गुंजा जन गण मन
इस  देश प्रेम की खातिर जिस वीरों ने प्राण गवाया है
ध्वज कफन तिरंगा ओढ़ लिया वह वीरगती को पाया है 
आंसू का  गिरा एक कतरा माँ की ममता फिर बोल उठी 
चिरनिद्रा सोजा लाल मेरे भारत  माँ  का है  गोद सही 
कांधे पर रखकर बड़ा बोझ वह पुत्र प्रेम में बोल पडा़
देकर  कुर्बानी सुत मेरे भारत माता का भाल सजा
है  धन्य धरा की माटी जिसपर वीरों ने है जन्म लिया 
है  वीर पुरुष दिलशाद वही  जो वतन प्रेम में लहू बहा 
ओ ताबूत में सोने वाले निर्भय हो कर तू लेटा है 
तू इक माँ का है लाल नहीं भारत माता का बेटा है 
तेरी कुर्बानी की गाथा हम ब्यर्थ नहीं जाने देंगे 
वीरों का उद्भव फिर होगा हम आंच नहीं आने देंगे !!
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