यौवन ने ली अंगड़ाई थी,
घरवालों को चिंता जताई थी ,
लड़की होती पराया धन ,
माता ने गुहार लगाई थी |
तभी तुम आए संपर्क में हमारे ,
मैं बनू तुम्हारी दिल ये पुकारे ,
घरवालों के मिलन की आई बारी , 
उस पर मेरे नैना भी थे कजरारे |
दिल पर नैनो का कुछ जादू हुआ ऐसा, 
तुमने न देखा घर में आता हुआ पैसा, 
घरवालों की पसंद को साफ किया इंकार , 
बोले तुम भाए नहीं कोई तुम्हें मुझ जैसा|
हम दोनों बन गए एक दूजे के कायल, 
 नैनो ने कर दिया था हमें ऐसा घायल ,
आया दिसंबर का था जब यह महीना ,
पहनकर मैं तुम्हारे घर आई पायल |
प्रथम प्यार की मधुर सी जो बनी कहानी, 
लिख रही हूंँ आज मैं यहाँ अपनी जुबानी, 
सुख-दुख, उतार-चढ़ाव बहुत आए जीवन में ,
सनम मैं आज भी हूँ तेरे ही दिल की रानी |
पिया आज भी तुम रहते मेरे अंतर्मन में ,
मिलन की प्यास आज भी रहे तन मन में , 
प्रथम मिलन की बेला जैसा ही खुमार ,
अधरों पर खिलती मुस्कान तेरे ही आंगन में |
जीवन यूँ ही संग तेरे चलता हमारा रहे सदा, 
आती दिल से निकल कर बस यही दुआ , 
कहानी हमारी कुछ इसी तरह बढ़ती रहे ,
आंगन खुशियों से रहे यूंँ ही महकता सदा ||
शिखा अरोरा (दिल्ली)
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