गोरी तेरे ये खुले केश,
करते हैं घायल मेरे नेत्र,
लगती तू हर रूप में सजीली,
तेरे रूप पर वारी मैंने खुशी,
ये भोला-भाला तेरा मुखड़ा,
लगता है मुझे चॉंद का टुकड़ा,
ये पलकों के किनारे कजरारे,
घायल करते देते दिल को हमारे,
जब छनकते हैं तेरे कंगन,
मन में जग जाती है उमंग,
सुनकर तेरी पायल की झंकार,
जीवन में आ जाती है बहार,
पर सबसे मोहक, सबसे प्यारी,
सुंदर, सजीली, औ’ चमकीली
माथे पर तेरे सजी बिंदिया है
जिसने चुरा ली मेरी निंदिया है,
इस बिंदिया का ही है कमाल
धड़के है नादान दिल बारंबार
घूंघट में भी दमकती है ये
तेरी बिंदिया ही तो है रे।
©मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश