एक अजनबी इंसान से
रिश्ता ऐसा बन जाता है
होकर भी वो अजनबी
अपना नसीब बन जाता है
नसीबों से मिलता है ऐसा
एक साथी कोई अपना सा
मिल जाए तो जीवन रौशन
नही तो लगे फिर सपना सा
कितनी खुशियां कितने ही गम
हां साथ में मिल के बांटे हम
अगले जन्मों का पता नहीं
इस जन्म साथ मैं जीले हम
हो जाये कोई भूल अगर
तो प्यार से मुझे बता देना
जीवन मरण का पता नही
बस इतना साथ निभा देना
तेरे बिन भी क्या जीना है
नहीं मुझको कभी जानना है
तेरा साथ रहे मेरे हमदम
बस दुआ में यही मांगना है
मैं क्यों सोचूं कि तेरे बिन
जीना भी पड़ जाए मुझको
मैं क्यों सोचूं कि मेरे बिन
जीना भी पड़ जाए तुमको
मैं क्यों सोचूं ऐसा ख्याल
जिसमे तुम मेरे साथ न हो
मैं क्यों नहीं ऐसा सोचूं
तुम हर पल मेरे साथ रहो
कविता गौतम…✍️