थामकर हाथों में जब मैने तेरा हाथ
कह डाले थे अपने दिल के सारे जज्बात
याद है मुझे अब तक वो प्यार भरा अहसास
नरम नरम हाथों की वो रेशमी गरमाहट
गोरे गोरे हाथों में सजी मेहंदी का सुर्ख रंग
कोहनी तक चूड़ियों से भरे हाथ करती खन खन
चंद्रमा भी फिका पड़ जाए देख चेहरे का नूर
एक नजर में छा गया मुझ पर तेरा सुरूर
किया वादा खुद से जब थामा तेरा हाथ
ना छूटेगा तेरा मेरा साथ उम्र भर
जान भी कुर्बान तेरी एक हसीं पर
डोली में बैठ आई थी दुल्हन बन
खुशियों से गूंज था उठा घर आंगन
उम्र के इस पड़ाव पर आकर जब
ना रिश्ते नाते साथ हैं
ना शरीर में बाकि जवानी सी
ताकत हैं ना वो एहसास है
पर तू आज भी वही खड़ी हैं
मेरे सिरहाने मुझे जगाने
चाय की प्याली के साथ
अधरों पर लिए मीठी मुस्कान
बदल गया जमाना जीवन के
मायने ही बदल गए
पर आज भी तेरी मेरी
चाहतों का वही दौर जारी है
नेहा धामा ” विजेता ” बागपत , उत्तर प्रदेश