नर है तू नारायण अगर
तो हूं मैं भी नारायणी
नाको चने चबा दूं अरी को
चाहूं तो भरवा दो पानी
ना जाओ मेरे रंग रूप पर
बेशक नाजुक मैं फूलों सी
आन पड़े कुल की मर्यादा पर
तो ले लूं शत्रु के प्राण भी
गर तू हैं पति परमेश्वर
तो हूं मैं भी तेरी अर्धांगिनी
तुझमें सिंह सी गर्जन है तो क्या
मुझ में भी चपला सी तेजी
गर तू करता शंखनाद युद्ध का
मैं भी रण में हूंकार भरू
है गर तू बादल तो क्या
रिमझिम बरसात हूं मैं भी
तू डाल डाल का बल तो क्या
पत्ते पत्ते की हरियाली मैं भी
माना तू तेज हवा का झोखा हैं
हवा संग उड़ती खुश्बू मैं भी
तू अथाह सागर हैं नीर का
नदियां बन मैं तुझमे मिलती
हैं गर अंबर की ऊँचाई तुझमे
तो हैं धरा सा धर्य मुझमे भी
कदम दर कदम संग तेरे चलती
कितने तूफान आये ना डरती
फिर तुझ में किस बात का मद
देख हूं मैं कितनी सरल सी
नेहा धामा ” विजेता ” बागपत , उत्तर प्रदेश