तू डाल डाल मैं पात पात,
किसी से कौन कम यहां,
झुकने वाला जमाना गया,
लिहाज़ शर्म के लोग कहां।
जिसमें जितनी ताकत दिखे,
वो यहां उतने में है बिके,
सच को झांके कौन अब,
झूठ का अब सावन यहां।
तू डाल डाल मैं पात पात,
किसी से कौन कम यहां।
भलेपन का अब है दौर नहीं,
अपनों पर करता कोई गौर नहीं,
चालाकी की जीत है होती अब,
अपनापन अब किसी में कहां,
तू डाल डाल मैं पात पात,
किसी से कौन कम यहां।
इस अंधी दौड़ के हैं सब लोग,
जीतकर ही मिलता सुख का भोग
पर निकलो इस बुराई से सब,
खुशियों का बनाए रखो समां,
तू डाल डाल मैं पात पात,
किसी से कौन कम यहां।
