शीर्षक :- तू डाल डाल मै पात पात

    रामेश्वर प्रसाद के स्वर्ग सिधारने के बाद उनके दोनौ बेटे उनकी सम्पत्ति के बटवारे के नाम पर आपस में झगडा़ करने लगे।

उनको रिश्तेदारों व अन्य सभी ने बहुय समझाने की कोशिश की थी परन्तु दोनौ में से कोई भी किसी की नहीं सुनता था।दोनों अपने अपने दाव पर चौकस थे।

     बडे़ बेटे मनोहर ने तो अपने पिताजी के  सामने ही अपनी बहू के नाम से  अलग से सम्पत्ति खरीद ली थी।  एक बार रामेश्वर प्रसाद ने इस पर आब्जैक्शन उठाया तब वह बोला कि आप अपनी जमीन  मुझे ठेके पर देदो  मै जो भी ठेका होगा आपको नकद दे दिया करूँगा। जो भी नफा नुक्सान होगा वह मेरा होगा। 

   जब मेहनत मैं करूँगा तो फायदा भी  मैं ही उठाऊँगा अथवा मेरी नौकरी बाँध दो। यह बात सुनकर वह चुप होगये वह जानते थे इससे कुछ कहना बेकार है।

जब छोटे बेटे अरुण को यह मालूम हुआ  तब उसे बहुत दुःख हुआ क्यौकि उसका भाई उसके स्कूल की फीस देते हुए भी रोता था।  अन्त में अरुण को प्राईवेट स्कूल से हटाकर सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया था। अब अरुण समय की प्रतीक्षा करने लगा।

  अब जब अरुण की शादी होगयी तब उसकी पत्नी ने सोने चाँदी सभी गहनौ पर अपना आधिकार जमा लिया और वह उनको अपने मायके में ही छोड़ आई। इसमें अरुण का हाथ भी  था। 

  इसके बाद अरुण के बेटा होगया। जब वह पांच साल का हुआ तब रामेश्वर बीमार रहने लगे। अब अरुण के मन में भी बेईमानी आगयी और उसने  एक दिन कुछ पेपर पर उनका अगूँठा लगवा लिया।

 रामेश्वर के स्वर्ग सिधारने के बाद मालूम हुआ कि पूरी जमीन  तो अरुण के बेटे के नाम होगयी है और उसका दाखिला खारज भी होगया है।

जब मनोहर यह शिकायत लेकर पंचायत में गया तब अरुण पंचौ से बोला,” बडे़ भाई ने भी तो भाभी के नाम से कितनी जमीन खरीद रखी है। वह डाल डाल है तो मै भी पात पात हूँ। अब बटवारा होगा तो पूरी जमीन का होगा नहीं जो जमीन मेरे बेटे के नाम है वह मेरी और जो भाई या भाभी के नाम है वह उनकी है। “

  अब मनोहर की समझ में सब आगया था । फिर पंचौ ने पूरी जमीन के दो हिस्से करवाये तब बात बनी।

इस तरह मनोहर डाल डाल था तो अरुण पात पात था।
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