जैसे तू मुझे संभाले है वैसे मैं सहारा तेरा हूं,
परिवर्तन को छुपाए तेरे जीवन का फेरा हूं।
तू नवकिसलय सा और मै घना वृक्ष अविचल,
जीवन की इस धूप में तेरे लिए छांव हूं हरपल।
रूप है तू मेरे भूत का और मैं तेरा अनागत,
तेरी ढलती सांझ हूं मैं,तू मेरा भोर समागत।
जहां तेरे हाथों में हैं मेरे लड़कपन की लड़ियां ,
वहां मेरे हाथों में तेरी गंभीरता की हैं झुर्रियां ।
कदम तेरे लड़खड़ाते हैं तो मैं भी कंपित हूं,
तू मजबूत नींव स्तंभ का मैं धूल धूसरित हूं।
मेरे सम्पूर्ण जीवन की तू यादों की सौगात है,
और तेरा आने वाला कल मेरे रूप में तेरे साथ है।
पूर्ण है ये जीवन तेरे कदम से मेरे कदम तक,
उदित”रश्मि तू ले चल मुझे मेरे उस तम तक।
तू इस जीवन चक्र के अनेकानेक बिंदु में से,
आरंभ है मेरा और मैं अंत तेरा इस सिंधु में से।
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मौलिक व स्वरचित~
कीर्ति रश्मि “नन्द
( वाराणसी)