तुम परिधि हो मेरे प्रेम की

मैं बिंदु हूँ तुम्हारा
तुम सागर हो मेरे प्रेम के
मैं नदियां की धारा
तुम गगन हो मेरे प्रेम के
मैं उड़ता विहग बेचारा
तुम माला हो मेरे प्रेम की
मैं गुलाब हूँ तुम्हारा
तुम सरिता हो मेरे प्रेम की
मैं इठलाती तरंग धारा
तुम निकुंज हो मेरे प्रेम के
मैं लिपटी लता तुम्हारी
तुम हृदय हो मेरे प्रेम के
मैं स्पन्दन तुम्हारा
तुम कृष्ण हो मेरे प्रेम के
मैं विरहिणी बाला।
गरिमा राकेश गौत्तम।  कोटा राजस्थान
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