तुम मानो या न मानो
मैं आज भी तुमसे
बेइंतहा मोहब्बत करती हूँ
माना अपनी मोहब्बत में
मिलन नहीं जुदाई लिखी थी
पर इश्क हमारा दूरियों में
भी अपने शबाब पर है
बहुत सादगी थी अपनी मोहब्बत में
आज भी वैसी ही तड़प होती है
जो उन दिनों होती थी
जब हम जवां थे पर
प्यार हमारा रूहानी था
इसलिए बिन मुलाकात
आज भी उन हसीन पलों की
यादों के सहारे जी रहे हैं
माना कि कभी अपने जज्बात
अपने अहसास कह नहीं पाए तुझसे
पर तुमसे छिपा भी तो नहीं पाए
खामोश निगाहों ने
सब राज दिल के खोल डाले
सच उम्र ढलान पर आ गई है
तुम्हारी में नहीं जानती पर
मुझे हकीकत में तुझसे
बेइंतहा मोहब्बत है…..
नेहा शर्मा