सुनो! मैं आज भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
यह दिल पल-पल तुम्हें याद करता है,
तन्हाई के आलम से आज भी उतना ही डरता है।
सुनो! मैं आज भी तुम्हारे लौटने का इंतजार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
मेरा मन मुझसे हमेशा यही सवाल कहता है,
जो तेरे दिल में है वो तेरे साथ क्यों नहीं रहता है?
सुनो! मैं आज भी तुम्हारे लिए इस दिल को बेकरार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या मानो।
मैंने तुम्हारी दौलत से नहीं सिर्फ तुमसे मोहब्बत की है,
तुम्हें माना है अपना खुदा बस तुम्हारी इबादत की है।
सुनो! आज मैं इस बात का भी इकरार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
मुझे तो हमेशा से सिर्फ प्यार और वक्त ही चाहिए था,
जो मेरी तरह ही मुझसे मोहब्बत करे, एक ऐसा शख्स चाहिए था।
सुनो! आज मैं तुमसे अपनी मोहब्बत का इजहार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
मोहब्बत में अपनी मैं अपना एक उसूल रखती हूं,
गर मिले दर्द मोहब्बत में, तो वो भी हंसकर कुबूल करती हूं।
सुनो! मैं वो हूं जो इश्क में हर हद को पार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
झगड़ना पसंद नहीं है
लेकिन अगर तुमसे रूठ जाऊं तो मना लेना मुझे,
नादानी में अगर गलतियां कर जाऊं
तो बेशक इसकी भी सजा देना मुझे।
सुनो! लेकिन नाराज न होना मुझसे कभी, मैं बहुत तकरार करती हूं…
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
सुनो! मैं आज भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं..
अब तुम्हारी मर्जी, तुम मानो या ना मानो।
लेखिका :- रचना राठौर ✍️
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