तुम डरते हो मुझसे
हां ,डरते हो तुम मुझसे अक्सर
 पर तुम्हारा अहम तुम्हें मानने नहीं देता ,
मेरा आगे बढ़ना पंख फैलाना 
तुम्हें कुंठित है कर देता,
तुम्हारा कुत्सित मन स्वीकार नहीं कर पाता 
मेरी तरक्की मेरी सफलता ।
बस घुंघट ,पर्दा , चूड़ी, कंगन में चाहते हो
 मुझे उलझाए रखना, बच्चे पैदा करना 
उन्हें पालना ,खाना बनाना घर संभालना,
और चाहे अनचाहे तुम्हारी हवस को मिटाना।
उसके बाद भी अगर मैं करती हूं  हिम्मत
अपनी पहचान बनाने की तो
 तिलमिला जाते हो ,
एक हलचल होती है तुम में 
और आदिमानव के इस समाज में
 क्या करना है घर के बाहर 
कौन से है तेरे यार ,
बात बात पर ताना ,बात बात पर मार
कभी शारीरिक ,कभी मानसिक तौर पर 
तुम हर पल करते हो प्रताड़ित 
ताकि ना मैं घर से बाहर जाऊं
 ना मैं कभी खुद को साबित कर पाऊं।
और इसी डर पर मुझे आती है हंसी 
वर्जनाओं के घेरे में मैं रहती हूं फंसी
 पर ,पर फिर भी मैं उड़ती हूं उड़ान
बना पाती हूं अपनी पहचान 
और तुम नक्कारखाने में तूती की तरह 
बजते जाते हो
क्योंकि सच में तुम मुझसे 
डरते जाते हो ,मुझसे डरते जाते हो।
स्वरचित सीमा कौशल 
यमुनानगर हरियाणा
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