रिश्ते सब तोड़कर । अपना घर छोड़कर।।
तुम कहाँ चल दिये, ओ मेरे भाई । ओ मेरे भाई।।
रिश्ते सब तोड़कर————-।।
क्यों रुठ गया आज सबसे, माँ यशोदा ऑंसू बहाये।
माँ कौशल्या मनाती है तुमको, ऑंसू दशरथ के रुक नहीं पाये।।
त्याग अयोध्या को ,राम जो वन में जाये । राम जो वन में जाये।।
रिश्ते सब तोड़कर—————-।।
भाई भरत तेरी पकड़े कलाई, मित्र सुदामा तुमको मनाये।
अर्जुन को जरूरत है तेरी, हनुमान तुम्हें जो बुलाये ।।
क्यों नहीं मानता तु बात किसी की, मथुरा को तेरी याद सताये। मथुरा को तेरी याद सताये।।
रिश्ते सब तोड़कर—————-।।
राधा तेरी दर दर को भटके, सीता को हम कैसे समझाये।
बैठी है तेरी आस लगाये, क्यों बेवजहां तु इनको सताये।।
मन की पीड़ा को समझे नहीं तु , इनसे तु ऐसे दामन छुड़ाये। इनसे तु ऐसे दामन छुड़ाये ।।
रिश्ते सब तोड़कर ———————।।
हाथ में लेकर राखी का धागा, बहिन तेरी राह को निहारे।
तोड़ यह बन्धन खामोश है तु , करती है फिर भी तेरी दुहा रे।।
बनकै परवाना उड़ गया आसमां में , दीपक सभी दिलों के बुझाये। दीपक सभी के दिलों को बुझाये।।
रिश्ते सब तोड़कर—————–।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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