तुम इस तरहां, पर्दा नहीं करो।
सच को कहने में ,शर्म नहीं करो।।
तुम इस तरहां, ———————।।
छुपाओ नहीं दर्द, करके यूँ पर्दा।
दबाओ नहीं जख्म,करके यूँ पर्दा।।
कहो किसने तुम पर, सितम यह किया है।
गुनाहगार बताने में, झिझक नहीं करो।।
तुम इस तरहां———————।।
रखो नहीं झूठ को , छुपाकर पर्दे में।
अपने पाप- गुनाहों को , छुपाकर पर्दे में।।
सच्चाई को कब तक , पर्दे में रखोगे।
पर्दे में छुपाकर सच, गुनाह नहीं करो।।
तुम इस तरहां——————–।।
उछले नहीं पगड़ी , कभी इस वतन की।
सारी दुनिया करें पूजा, अपने वतन की।।
लगे दाग पगड़ी पर , ऐसी राह चलो नहीं।
पर्दे के पीछे चमन, बर्बाद नहीं करो।।
तुम इस तरहां——————–।।
करो नहीं जीवन बर्बाद, नारी का पर्दे में।
रखों नहीं कैद यूँ तुम, नारी को पर्दे में ।।
कहने दो इनको बात, पर्दा हटाकर।।
रखकर नारीको अनपढ़, पाप नहीं करो
तुम इस तरहां———————।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)