मैं इश्क़ उसका…. वो आशिक़ी है मेरी…
मैं इश्क़ उसका.. वो आशिक़ी है मेरी..
वो लड़की नहीं.. ज़िन्दगी है मेरी…
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी है मेरी….
(सुमित ने कार की म्यूजिक सेस्टम से song चलाया और गुनगुनाते हुए अपने घर की तरफ कार दौड़ा दिया)
उसके ही दिल मे अब तो रहना है हर पल…
उस दिलरुबा से कहना है हरदम
मै इश्क़ उसका.. वो आशिकी है मेरी
मै इश्क़ उसका वो आशिकी है मेरी
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी हैँ मेरी
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी है मेरी…
खुशबू जैसे आए जाए…,कितना दिल को वो तड़पाए…
मेरी साँसे मेरी धड़कन…,वो हैँ मेरा… दीवानापन…
बेताबीयो मे है वो राहत का मौसम
उसके लिए ही मेरी चाहत का मौसम
मैं होश उसका…. वो बेखुदी है मेरी
मैन इश्क़ उसका वो आशिक़ी है मेरी
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी है मेरी
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी है मेरी…..
आँखों मे है उसका चेहरा…,, यादों मे है उसका पहरा
मैं हूँ राही वो है मंज़िल.. करना है अब उसको हासिल…
इन धड़कनो मे बाजे उसकी ही सरगम
वो मेरी जाना है वो मेरी जानम
मैं चैन उसका वो तिशनगी है मेरी..
मैं इश्क़ उसका वो आशिक़ी है मेरी
वो लड़की नहीं ज़िन्दगी है मेरी
वो लड़का नहीं…ज़िन्दगी है मेरी….
I miss you devi…. कब बयां कर पाउगा अपना ए प्यार आपसे…?कब… कब.. मिल पाउगा और कब आपके ज़िन्दगी मे भी हमारी मौजूदगी होंगी… कब.. कब.. देवी…? अब तो खुद से भी बताना मुश्किल होरहा है किस तरह चाहत है आपसे। आप ही हमारी ज़िन्दगी हो, हमारा पहला प्यार… और इन धड़कनो की जरूरत हो।कब बता पाउगा देवी आपसे की सुमित की सारी दुनिया ही आप बन गयीं हो.।और अपनी इस दुनिया को अब तलाश करके रहुगा ए वादा रहा सुमित का अपनी देवी से की बहुत जल्द ही आपसे मुलाक़ात होंगी जान….
इतना बोल वो आँखे बंद कर लम्बी साँसे ली और कार एक गेट के अंदर लेलिया। मतलब वो अपने मेंशन के गेट के पास ही कार रोक कर इतना बोल गया। और अंदर जाकर कार पार्क की अपना बैग लेकर घर के अंदर चला गया।
मुश्कान का घर…
राधिका, आरती और मुश्कान घर पहुंच चुकी थीं लेकिन कुछ घबराई हुई सी मुश्कान के रूम मे तीनो बेड पर बैठी है। लेकिन मुश्कान कहाँ एक जगह बैठने वाली ज़ब वो टेंशन मे हो। तो वो कभी चेयर पर बैठती तो कभी यहाँ से वहाँ तो कभी दोनों सहेलियों के बिच सर पकड़ कर बैठ जाती। उसे ऐसे आरती और राधिका दोनों ही चीड़ रही थीं पर कुछ कह नहीं रही थीं फिलहाल। कुछ देर यूही बीतने के बाद रूम मे कोई आया जिससे तीनो आस भरी नज़रो से देख रही थीं।मुश्कान उसे धीरे से
मुश्कान -शालिनी….
शालिनी -दी… तीनो की हाल देख कर ही समझ गयीं की कितनी घबराई हुई है।तो दौड़ कर मुश्कान को गले लगा लिया जिससे राधिका और आरती भी चौक गयीं मुश्कान को कुछ समझ नहीं आया फिर भी उसे कस के पकड़ लिया क्योकि उसे भी घबराहट कम करने के लिए ए जरुरी था। मुश्कान शालिनी को कसके पकड़ते हुए अपनी आँखे बंद कर ली और कुछ घंटो बाद क्या हुआ वो सोचने लगी।
(मुश्कान अपनी सहेलियों के साथ घर जा ही रही थीं की वैसे ही कुछ गाड़िया उनके बिलकुल करीब से बड़े तेज़ी से गुजरा जिससे आरती गिरते गिरते बची।ऐसे देख मुश्कान को गुस्सा आगया था। और वो गुस्से मे ही बड़बड़ाते घर की तरफ आने लगी। राधिका और आरती बहुत समझाया की छोड़ो जाने दो लेकिन मुश्कान गुस्सा के साथ डर भी गयीं थीं। क्योकि आज उसकी ख़ास दोस्त को कुछ भी होसकता था। ऐसे ही तीनो घर के पास पहुंच गयीं। लेकिन घर के सामने उन्ही गाड़ियों को देख वो रोक न सकी अपनी गुस्सा निकालने से। और वो कार से उतर रहे लोगो को गुस्से मे सुनाना शुरू कर दिया..।उसे ये भी ध्यान न रह की वो सब उसीके घर के सामने है। जिनमे कुछ औरते थीं और कुछ जेंट्स भी मुश्कान को आरती और राधिका ने भी रोकने की कोशिश की लेकिन मुश्कान रुकी नहीं बरस पड़ी ऊन पर जो ड्राइविंग साइड से उतर रहा था।और वो कहीं फ़ोन पर बाते भी कर रहा था की..
हाँ जी हम पहुंच चुके ठीक से और अपना ख्याल रखियेगा हम घर आकर बात करते है..।
वो शख्स इतना ही कहाँ था की मुश्कान की गुस्से भरी आवाज़ उनके कान मे पड़ी जो एक सूर मे बोल रही थीं की..
मुश्कान -ओ hello क्या समझ लिया है खुद को.? मतलब मेहनत या कैसे भी कार खरीद लिया है तो जैसे मन वैसे दौड़ाओ गे रोड पर उससे चाहे किसी को चोट या धक्का ही क्यूँ न लगे.। वो शख्स चोट की बात सून कर कुछ गंभीर होगया और शांति से पूछा..
वो शख्स -किसीको चोट लगी क्या अभी हमारे कार से..?उसका इतना कहना था की मुश्कान की पारा और चढ़ गयीं। वो उस शख्स के थोड़ी करीब जाकर
मुश्कान -मतलब जानबूझ कर वैसे चला रहे थे। ये भी पता था की किसीको चोट लग सकता है right..?फिर भी देखना या जाँचना जरुरी नहीं समझा… वाह क्या बात है।
वो शख्स -देखिये आप गलत समझ रही हो। एक्चुअली हम व…. वो इतना ही बोले थे मुश्कान उनकी बात काटते हुए
मुश्कान -गलत और हम ही.? Wow मिस्टर आपकी इस एक्चुअली के चककर मे न कतरा भर की कमी थीं हम अपनी सहेली को खो देते हमेशा के लिए। तब तक आरती और राधिका भी मुश्कान के पास आकर खड़ी होगयी लेकिन उन्हें भी अहसास नहीं हुआ की घर के सामने ही खड़े है और फॅमिली के साथ मेहमान भी उन्हें देख व सून रहे है। तभी पीछे से एक औरत के धीमी सी आवाज़ आई की क्या हुआ आकाश बेटा..?
आकाश -माँ.. उस वक़्त.. वो बोलते बोलते रुक गया। तब तक वो औरत भी उनके पास पहुंच गयीं।वो मुश्कान और दोनों सहेलियों को ध्यान से देखी और प्यार से बोली
आकाश की माँ -sorry बेटा उसके लिए हम माफ़ी चाहते है। दरसल हमें अड्रेस पता करने मे ध्यान नहीं रहा गलती हमारी है। और भगवान की आसिम कृपा ही की आपकी सहेली को कुछ नहीं हुआ वरना हमारा शुभ काम से आए थे बहुत बड़ी अशुभ होजाता। इतना सुनकर मुश्कान की दिमाग़ ठनका या ये कहें की उसे अहसास होगया की वो कहाँ खड़ी है वो ये लोग कौन होसकते है। वो वैसे ही आकाश की माँ को हाथ जोड़ी और तेज़ी से पीछे मुड़ी की घर के अंदर भागे। तभी उसकी नज़र मोहित,शीतल और रोहन पर पड़ी जो उसे घूर रहे थे। मुश्कान राधिका और आरती को जल्दी घर मे जाने की इशारा किया और तेज़ी से घर के अंदर चले गए।आकाश और उनकी माँ भी हैरान रह गए वो भी शीतल के पास आकर बोली..
बहन जी ये लड़किया…?
शीतल -हाँ बहन जी ये मेरी ही बेटी थीं मुश्कान, ये कुसुम और मोहित से छोटी है और दोनों उसकी सहेलियां है। तीनो साथ रहती है हमेशा।उसके वर्ताव के लिए हम माफ़ी मांगते है। कृपया उसकी बातो की बुरा न माने ना समझ सी वो
आकाश -नहीं आंटी जी आप माफ़ी मत मांगिये। वो सही थीं गलती हमारा ही था।
आकाश की माँ -हाँ बहन जी आकाश सही बोल रहे है।
मोहित -फिर भी आकाश जी…
आकाश -कोई बात नहीं मोहित जी। सब ठीक है
रोहन -अच्छा आंटी जी और आकाश जी घर के अंदर चलिए माँ भईया.. क्या आप लोग भी घर के बाहर ही खड़े रखे है।
शीतल -हाँ बहन जी चलिए और बेटा आप भी.. आकाश के तरफ देखते हुए कहाँ तो वो भी हाँ मे सर हिला कर सब घर मे आगए। तब तक मुश्कान अपनी दोनों सहेलियों के साथ रूम मे lock कर लिया था।)इतना सोचकर मुश्कान ने अपनी आँखे खोली तो उसकी आँखे लाल होचुकी थीं आँसू जैसे पलकों से इजाजत मांग रहा हो बहने के लिए। शालिनी मुश्कान की हालत देख घबरा सी गयीं लेकिन उसे हंसाने के लिए मज़ाक करना शुरू कर दिया। वो अचानक से मुश्कान को ध्यान से देखते हुए बोलने लगी
शालिनी -नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं.. बिलकुल भी हिमाकत न करना वहाँ से हिलने की भी समझें? उसकी बात सून कर राधिका और आरती भी कंफ्यूज होगयी। मुश्कान जैसे कोई पुतला बन गयीं थीं। लेकिन शालिनी की बोलना नहीं रोकी..
अरे.. हमारी दिदु की नाम मुश्कान है और मुश्कुराते, शरारत करते और हँसते हंसाते हुए अच्छी लगती है। लेकिन तुम कहाँ से आगए मेरी दी के आँखों मे वो भी इस घबराहट को साथ लेकर..? मै बोल रही हूँ अभी के अभी वही से सुख जाओ और अपने साथ इस टेंशन को भी लेजाओ। जिससे हमारी मुश्कान दिदु की मुश्कान वापस आजाए। भई इतना ख़ुशी की बात हमारी बड़ी दीदी की रिश्ता तय होगया और तुम हमारी एक दिदु को रुलाये बैठे हो…। इतना सुनकर मुश्कान की चहरे पर चमक आगयी और फिर से शालिनी को हग कर लिया उसके पीछे आरती और राधिका भी। मुश्कान वैसे ही
मुश्कान -सच मे न शालू…
शालीनी -कन्नू दी की जसम 🤗🤗
मुश्कान -thankq भगवान….
शालिनी -हाँ दी लेकिन अभी मुझे छोड़ो सबने आप तीनो को बुलाया है। इतना सुनकर तीनो एक दूसरे को देखने लगी फिर शालीनी को लाचारी से देखने लगी। शालिनी उनकी बात समझते हुए..
अरे ऐसी कोई बात नहीं बस आप तीनो न अपनी हुलिया ठीक कर लो इस हाल मे मत जाना बाकी सब ठीक है। 😁इतना बोल कर वो हँसते हुए रूम से बाहर आगयी।कुछ देर मे तीनो सहेलियां हॉल मे पहुंची जहाँ सब आपस मे हंसी खुशी बाते कर रहे थे। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल कर हंसी मज़ाक कर रहे थे। लेकिन ये तीनो की चहरे पर कोई भाव नहीं था सिवाए घबराहट के। सबसे पहले नज़र आकाश की माँ की पड़ी जो धयान से मुश्कान को देखने लगी। तो सबकी नज़र भी ऊन तीनो पर ही घूम गयीं जिससे वो और भी नर्वस होगयी। उन्हें ऐसे देख आकाश के साथ बैठे दो और boys थे वो हँस पढ़े और आकाश से धीरे से बोले की.. यार.. लगता है हम कुसुम भाभी को नहीं इन्हे देखने आए है। 🤭आकाश उन्हें घूरते हुए
आकाश -चुप… ज्यादा नहीं ok..तो वो दोनों भी चुप होगए। लेकिन ये तीनो अपनी जगह से हिली नही जैसे कोई कैदी हो बहुत बड़ी गुन्हा करके सज़ा सुनने के लिए खड़े हो।आकाश की माँ अपनी जगह से उठ कर मुश्कान के पास आई और मुश्कान की गाल छूते हुए
आकाश की माँ -समधन जी सच मे जैसा नाम है वैसे ही खूबसूरत भी है हमारी मुश्कान। इतना सुनना ही था की मुश्कान की आँखे फिर से भर आई और वो दोनों हाथ जोड़ कर
मुश्कान -हमें माफ़ कर कीजिये आंटी जी। हमें…इतना बोली ही थीं की आकाश की माँ उसकी बात काटते हुए
आकाश की माँ -अरे नहीं बेटा हमे आप तीनो से कोई शिकायत नहीं है बल्कि फक्र है की आपने गलत पर आवाज़ उठाई। हर किसी के बस का नहीं होता बेटा आप बहुत बहादुर हो और ऐसे ही रहना। इतना बोलकर वो मुश्कान को सीने ले लगा लिया। ये देख सबकी चहरे पर मुश्कान छागयी।आकाश की माँ आरती और राधिका को देखी तो वो दोनों भी अपनी हथेली मिस रही थीं। तो वो मुस्कुराते हुए ऊन दोनों की माथे को चुम लिया और और हमेशा यूही साथ रहना, एक दूसरे की ढाल बनकर और हमेश ख़ुश रहना बेटा तीनो के सर पर हाथ रख दिया। जिससे इनकी टेंशन भी दूर होगयी और चहरे पर मुश्कान खिल गयीं।कुछ देर बाद सब जाचुके थे। और समय मे लग भाग शाम के 8बजने को आरहे थे तो सबने खाना खाकर सोने चले गए। रात होने के कारण शीतल ने राधिका और आरती को जाने नहीं दिया की सुबह साथ मे ही आश्रम चली जाना आज यही रुक जाओ। तो वो लोग भी घर पे बताकर मुश्कान के यहाँ रुक गयीं और मुश्कान के रूम मे ही दोनों सो गयीं।लेकिन मुश्कान की नींद उडी हुई थीं।वजह क्या थीं पता नहीं but कुछ तो बात था उस बेचैनी की जिसे मुश्कान समझ नहीं पारही थीं। वो खुद से बोलने लगी की.. मुझे नींद क्यूँ नहीं आरहा है यार..? क्या वजह है इसका, ये दिल मे बेचैनी क्यूँ होरही है आज। कहीं दीदी की शादी को लेकर तो नहीं.. 🤔🤔🤔। लेकिन दीदी की शादी तो तय होगयी। फिर क्या वजह है। आरती अपने कान को तकिये से ढकते हुए
आरती -सोजा मुश्कान.. यार दिन नहीं है। रात है ये और सोने के लिए होता है। मुश्कान उनके पास आई और उनको ब्लैंकेट ठीक करते हुए
मुश्कान -हम्म… Good night.. इतने मे आरती नींद मे खो चुकी थीं। लेकिन फिर भी मुश्कान की बेचैनी कम नहीं हुई थीं वो रूम की खिड़की के पास गयीं और आसमान की तरफ देखने लगी।जिससे उसके चहरे पर थोड़ी मुश्कान बिखर गयीं। और सुकून से मुस्कुराते हुए तारो के बिच चमकता चाँद को ध्यान से देखने लगी। और कुछ लफ्ज़ बुनने लगी जो कुछ इस तरह था…
हे झिलमिलाती सितारे और ये खूबसूरत नज़ारे
बता ज़रा इस समा मे छुपा राज़ क्या है
हर रोज़ से ज्यादा है चाँदनी बिखरी नज़ारो मे
ए चाँद बता इस रात मे छुपी राज़ क्या है…!
हर रोज़ देखा करते है तुम्हे अपनी खिड़की से
पर आज जैसे खुमारी हमें कभी नहीं होते थे
क्यूँ लग रहा है कुछ अलग सा समा इस रात की
ए चाँद बता इस रात मे छुपी राज़ क्या है…!
ये किसी बेचैनी है आज धड़कनो मे हमारे
जो आँखों से नींद दूर दूर तक नज़र नहीं आरहा है
ये कैसा अहसास है साँसो मे जो समझ नहीं आता
ए चाँद बता इस अहसास मे छुपी राज़ क्या है…!
कैसा है ये दर्द जो अनजाना सा लग रहा है
जैसे किसी और के दिल ने हमें तड़प कर पुकारा है
क्या कोई और भी है जागे जागे से इस रात मे
ए चाँद बता इस रात मे छुपी राज़ क्या है…!
फलक पे चमकता सारे जहाँ को देखता है तू
जो भी मिलते है तुमसे उनके हाल-ए-दिल समझता है
फिर चुप क्यूँ है आज इस समा मे हमें भी समझा दें
की इन लबों पे बिखरी बेवजह मुश्कान की राज़ क्या है
ए चाँद बता भी दें की इस रात मे चुपी राज़ क्या है….!!
इतना वो चाँद को देखते हुए दिल ही दिल मे बुन लिया और धीरे से बोली…
सच मे कोई राज़ है या बेवजह ये बेचैनी कहीं किसीका तड़प तो नहीं न…इतना बोलकर वो चाँद को देखते हुए ही बेड से सर टिका कर बाहो मे तकिया लिए ज़मीं पर बैठ गयीं। वही अपने रूम की खिड़की पर खड़ा सुमित भी चाँद को देखते हुए कहने लगा की
हाँ देवी बहुत तड़प रहे है आपके लिए जान… पता नहीं कभी आपको अहसास दिला पाउगा भी या नहीं। आज भी आपके करीब आकर भी दूर रह गया। हे भगवान कुछ तो सून ले हमारे भी कोई तो जरिया दीजिए हमें देवी से मिलने की pls god…. बोल कर वो भी सोफे पर ही लेट गया…।।
क्रमशः : पढ़ते है अगले part मे की कैसे मिलते है मुश्कान और सुमित…..
नैना…. ✍️✍️✍️