जाने क्यों याद आये, तुम्हारा शहर
 संग-संग चले थे, हर इक डगर
 वो रास्ते ,वह गलियां यादें नजरों में
 याद करता हूं जहां ,तुमको मैं हर पहर ।।
 जाने क्यों याद आये, तुम्हारा शहर
 रूठना,मनाना एक दूजे को समझाना
 छोटी-छोटी बातों को, यूं दिल से लगाना
 यादों का था वो,प्यारा नजराना ।।
 जाने क्यों याद आये,तुम्हारा शहर
 तुम जो चले गई, रूठ कर मुझसे
 फिर क्यों वह, मुलाकात याद आया
 मोहब्बत है आज भी दिलोंजान तुमसे ।।
 जाने क्यों याद आये तुम्हारा शहर
 रुकसत हुए तुम ,अलविदा कहकर 
 यादों को तेरी ,मैं संभालता रहा
 अश्कों को अपने, यूं छुपाता रहा
 मिले जहां हम-तुम वो प्यारा शहर ।।
                       मनीषा भुआर्य ठाकुर(कर्नाटक)
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