तेरे शहर में मुझे मिलती कभी राहत नहीं
  इतनी मतलबपरस्ती की मुझे आदत नहीं 🌃
छपते हैं रोज अखबार कई ज़ुबानों में
  छपती है देह यहाँ अब कोई रिवायत नहीं 🌃
बजते घण्टों का ये अज़ानों का शोर
    बस भीड़ है भरी यहाँ कोई भी इबादत नहीं 🌃
अलग है दुनियाँ यहाँ अलग हैं दस्तूर
    दौड़ है दिन रात की यहाँ कोई थकावट नहीं 🌃
ना ख़ुदा का खौफ ना भगवान का डर
    सब कुछ मिलता है यहाँ बस इक शराफत नहीं 🌃
मैखानों में यहाँ इक अलग सी है रौनक़
    दवा में हो शायद दारू में यहाँ कोई मिटावट नहीं 🌃
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी
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