साथियों, आज रश्मिरथी ने हमें लिखने के लिए “तितली” शीर्षक दिया है। जो बच्चों क्या सभी को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखतीं हैं। तो चलिए आज हम इनके विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी एकत्र कर लेते हैं। 
     सर्वप्रथम तो मैं कहना चाहूँगी कि तितली कीट वर्ग का सामान्य रूप से हर जगह पाया जानेवाला प्राणी है। यह बहुत सुन्दर तथा आकर्षक होती है।
            दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। इसके शरीर के मुख्य तीन भाग हैं सिर, वक्ष तथा उदर। इनके दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी सन्धियुक्त पैर होते हैं अतः यह एक कीट है। इसके सिर पर एक जोड़ी संयुक्त आँख होती हैं तथा मुँह में घड़ी के स्प्रिंग की तरह ‘प्रोवोसिस’ नामक खोखली लम्बी सूँड़नुमा जीभ होती है। जिससे यह फूलों का रस (नेक्टर) चूसती है। ये एन्टिना की मदद से किसी वस्तु एवं उसकी गंध का पता लगाती है।
तितली के विषय मेें हम सामान्यतः कह सकते हैं कि –:
1. तितली रंग बिरंगे विविध रंगो की बहुत ही छोटी और सुंदर सी जीव होती है, जिसको बहुत ही प्राचीन काल से जाना जाता है़
2. तितली के चार पंख होते है जिनके आर पार देखा जा सकता है।
3. तितली का औसतन आयुकाल 2-4 हफ्तों का होता है।
4. तितली सुन नहीं सकती लेकिन वाईब्रेशन को महसूस कर सकती है।
5. पूरे विश्व में 24000 प्रकार की तितलियाँ पाई जाती है । अंटार्टिका में तितली नहीं पाई जाती है।
6. तितली अपने अंडे पेड़ के पत्तों पर देती है।
7. तितली अपने पैरों से हर चीज का स्वाद लेती है।
8. तितली 17 फीट प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती है और उड़ने के लिए उसके शरीर का तापमान 29° सेलसियस होना चाहिए।
9. तितलियाँ भी फूलों का रस चूसती है।
10. तितली की आँख में 6000 लैंस होते है जिस वजह से वह अल्ट्रावायलट किरणों को भी देख सकती है।
      अब आइए इनके विषय में कुछ और बातें भी कर ली जाएं, जैसे कि ये स्वभाव से बहुत चंचल और एक स्थान पर अधिक न टिकने वाली होती हैं इसी लिए चंचल स्वभाव वाली बालाओं को तितलियों की उपमा दी जाती है,जो उनके शालीन व्यक्तित्त्व के लिए उत्तम नहीं माना जाता है।कुछ सीमा तक मैं भी इस विचार को स्वीकारती हूँ। हालांकि कभी मैं भी बाला ही थी परन्तु फिर भी जो व्यक्तित्त्व के लिए श्रेयस्कर नहीं है वह मुझे स्वीकार्य नहीं है।
     वह एक जीव है और उसका जीवन बहुत लघु है,तो उसका स्वभाव/ प्रकृति मानव जीवन के लिए अनुकरणीय नहीं हो सकता। चाहे वह उन्मुक्तता से संबंधित हो या फिर अस्थिरता से।किसी की सोच अलग भी हो सकती है पर यह मेरा व्यक्तिगत मंतव्य है। इनका रूप रंग लुभावना है तो सौंदर्य के प्रतीक के लिए बढ़िया है परन्तु इनकी नाज़ुकता की तुलना भी मनुष्य जाति से मेल नहीं खाती ऐसा मैं मानती हूँ। हमारे लिए तो अंतस् और बाह्य दोंनो प्रकार की सुदृढ़ता परम आवश्यक है।मनुष्य जीवन को सुगम और सार्थक बनाने के लिए सर्वोत्तम है सर्वोच्च कोटि का मनोबल होना जो अपनी चतुर्दिक बाधाओं को लांघ सके।मुझे लगता है कि आज के शीर्षक पर इतना पर्याप्त है।
धन्यवाद!
          लेखिका –
              सुषमा श्रीवास्तव 
               
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