अच्छा , तो अब हम चले
उस नीले खुले आसमान के तले
तितली सी बेखौफ उड़ान भरना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
बड़ी बेरंग सी हो चुकी है जिंदगी
न कोई हंसी है इसमें, न ही दिखती है कोई खुशी
अपनी बेरंग सी जिंदगी में , हजारों रंग भरना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
बचपन से लेकर आज तक
हमेशा दूसरों के हिसाब से खुद को ढालती रही हूं
बहुत चोट लगी इस मासूम से दिल पर
मगर हर बार मैं खुद को संभालती रही हूं
अब सब कुछ भुलाकर एक नयी शुरुआत करना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
सबकी खुशी के लिए अपने कई सपनों को मैंने मार दिया
खुद धोखा खाकर भी सबको उनके हिस्से का मैंने प्यार दिया
अब जिंदगी में अपनी खुशी के लिए भी कुछ करना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
जानती हूं ज्यादा लंबी चलती नहीं जिंदगी
हमारे हिसाब से कभी भी ढलती नहीं जिंदगी
जिंदगी छोटी ही सही , मगर खुलकर जीना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
पास नहीं ,
दूर ही सही , मगर कुछ अपने मेरे संग तो हैं
बाज-से मजबूत तो नहीं ,
तितली के जैसे कोमल ही सही , मगर मेरे पंख तो हैं
इन पंखों के सहारे ही सफलता के मुकाम तक पहुंचना है मुझे
हां , तितली – सा बनना है मुझे।
हां , जानती हूं फूल चुनने हैं तो कांटें भी चुभेंगे
कांटों भरा सफर में मिले चोट के निशां, आसानी से नहीं मिटेंगे
अब चाहे आए कोई भी मुश्किल मैंने ठान लिया है,
यह कांटों भरा सफर देखकर बिल्कुल भी नहीं डरना है मुझे
हां , तितली-सा बनना है मुझे।
खुले आसमान में आजादी की उड़ान भरना है मुझे…
हां , तितली-सा बनना है मुझे।
सारी उम्र घुट-घुटकर नहीं मरना है मुझे…
हां , तितली-सा बनना है मुझे।
लेखिका :- रचना राठौर ✍️