तितली रानी बड़ी सयानी, 
महके उपवन घूमे डाली डाली, 
उड़ती रंग बिरंगे पंख फैलाए, 
करती रहती अपनी मनमानी। 
तितली रानी है इतराती,
कभी हमारे हाथ ना आती, 
पीछे पीछे हम दौड़ लगाते, 
फूलों बीच जाकर गुम हो जाती। 
लगती सतरंगी घटा घनेरी, 
सब का मन मोहे तितली रानी, 
चुपके से पास हमारे आ जाए, 
कर दोस्ती झट से उड़ जाए। 
चलें बाग उपवन तितली के संग, 
प्रेम हो प्रकृति से चंचल हो मन, 
रंगों की इस दुनिया में हम मुस्काए, 
घूमे नभ में हम भी तारों के संग संग। 
आरती झा (स्वरचित व मौलिक)
दिल्ली
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