ये दुनिया संसार है रंगीला मायामोह से भरा है।
चक्कर में इसके आकर भला कौन न पड़ा है।।
परिवार गृहस्थी की दुनियादारी में क्यों पड़ा है।
जीवन ये जो मिला है प्रभु एहसान ये बड़ा है।।
इस जग में जब हैं आये माँ के गर्भ में था वादा।
धरती पे जाके प्रभु जी निभाएंगे अपना वादा।।
मुझको निकालें बाहर गुणगान का किया वादा।
दुनिया में आके भूल गया ईश्वर से किया वादा।।
घर परिवार ही संसार में लगने लगा यह अच्छा।
मायामोह का जाल भ्रमित करके रखा अच्छा।।
निज घर भी बस गया व सब लगने लगा अच्छा।
छूटता ना मोह का बंधन टूटता न रिश्ता सच्चा।।
ईश्वर ने ही बनाया है बांटा उम्र की एक अवस्था।
सब भोगों के अंत में आती वैराग्य की अवस्था।।
लेचुका बहुत है आनंद निज जीवन के व्यवस्था।
अब वक्त आया है सब तज वैराग्य की अवस्था।।
ईश्वर में मन लगाओ अब ईश्वर के गुण ही गाओ।
जीवन को अपने मानव कुछतो सफल बनाओ।।
छोड़ो ये मोह माया व ये दुनियादारी मुक्ति पाओ।
वैराग्य लो गृहस्थी से व भवसागर से पार पाओ।।
जिह्वा का स्वाद छोड़ो इस शरीर का सुख छोड़ो।
धन दौलत से मोह छोड़ो जर जमीं से भी छोड़ो।।
वैरागी जीवन जिओ अंत में कीर्तन भजन जोड़ो।
प्रभु से जो वादा कर आये प्रभु का नाता जोड़ो।।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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