जन्म,कर्म,शिक्षा,संघर्ष,उपलब्धि,मृत्यु व सम्मान
बाबा साहब अम्बेडकर,जी की आज जयंती है।
समाजसुधारक काम किये,उसका रंग वसंती है।
जन्मे14अप्रैल1891में,महू इंदौर मध्य प्रदेश में।
राम जी मौला-भीमा बाई,की14वीं ये संतान थे।
पाँच वर्ष के अल्प आयु में,माँ स्वर्गलोक सिधारीं।
भीमराव का पूरा पालन,पोषण चाची कीं बेचारी।
पिता मराठी अंग्रेजी गणित,के ज्ञाता शिक्षक थे।
जबतक जीवित रहे पढ़ाये,क्योंकि वे शिक्षक थे।
बचपन से ही तेजस्वी थे,संस्कृत का चाहते ज्ञान।
निम्न जाति में पैदा होने से,मिला ना उनको मान।
अछूतों जैसा जीवन झेले,सदैव हुए हैं अपमानित।
गुरु न शिक्षा देना चाहें,पानी पीना भी अपमानित।
पढ़ने में मेधावी थे ये,किसी तरह से पढ़ते लिखते।
पितृ मृत्यु बाद ये कैसे, अपनी पढ़ाई हैं पूरी करते।
किसी तरह मैट्रिक एवं बीए,की पढ़ाई पूर्ण किया।
महाराज बड़ौदा इनको,25रू माह वजीफा दिया।
मेधावी छात्रों को विदेश में,पढ़ने का देते थे मौका।
बड़ौदा नरेश की कृपा से,भीमराव भी पाए मौका।
अमेरिका इंग्लैंड में रहके, अम्बेडकर ने की पढ़ाई।
अर्थशास्त्र राजनीति कानून,विषय डट कर पढ़ाई।
महाराजा बड़ौदा ने इनके,यह सारे हैं खर्च उठाये।
पीएचडी भी किये वहीं से,उच्च शिक्षा लाभ पाये। 
स्वदेश लौटकर आने पर,10 वर्ष की उनकी सेवा।
सैनिक सचिव के पद पर,रहकर उनको दी है सेवा।
पढ़े लिखे थे पद पर रहकर,भी रोज सहे अपमान।
चपरासी तक भी करता,रहता था इनका अपमान।
भेदभाव अस्पृश्यता का,दलित होने का दंश झेला।
सवर्णों के बुरे व्यवहार, कट्टरपंथियों के सब झेला।
कुंठित हो सचिव पद त्याग दिया,बम्बई चले आये।
छुआछूत की बुरी भावना से यहाँ भी बच ना पाये।
मुम्बई में रह ‘बार एट लॉ’, की उपाधि ग्रहण किये।
सामाजिक भेदभाव बीच,यह वकालत शुरू किये।
वकील होनेके बावजूद भी,इन्हें कोई कुर्सी न देता।
एक मुकदमा कत्ल का, जीते जिरह से विधिवेत्ता।
दकियानूसी विचारकों की,काम ना आई खोपड़ी।
कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा,मन मार तब करनी पड़ी।
यह कहते थे दुनिया में ऐसा,कोई समाज है पवित्र।
मनुष्य के छूने मात्र परछाईं,से होजाता है अपवित्र।
अछूतोद्धार हेतु संघर्ष किये,आंदोलन कई चलाये।
लन्दन गोलमेज कॉन्फ्रेंस में,भी अपनीबात उठाये।
अंगेजों की गुलामी से हम,जब 47 में आजाद हुए।
स्वतंत्र भारत के प्रथम,कानून मंत्री अम्बेडकर हुए।
बने संविधान प्रारूप निर्माण, उप समिति अध्यक्ष।
दलित सुधार मान सम्मान, के भी यह रहे अध्यक्ष।
संविधान निर्माण में अपनी,अहम भूमिका निभाई।
दलितों के कल्याण हेतु, कई योजनायें भी बनाई।
कहे दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत में,मैं जन्मा भले मगर।
हिन्दू होकर नहीं मरूँगा,स्वीकारा बौद्ध धर्म डगर।
त्यागपूर्ण जीवन जीते,6दिसंबर56 को स्वर्ग धाये।
मरणोपरांत अप्रैल 1990,भारतरत्न सम्मान पाये।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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