मंगल की पत्नी की प्रसव के बाद ही मौत हो गई थी,रिश्तेदारों और गांव के शुभचिंतकों ने सलाह दी कि दुधमुहें बच्चे को एक मां की जरूरत है ,तुम्हें दूसरी शादी कर लेनी चाहिए।
लखन एक गरीब किसान था,घर में बेटी जवान हो चुकी थी ,लेकिन ब्याह के लिए पैसे नहीं थे।
किसी ने बताया कि दूसरे गांव में मंगल नाम के व्यक्ति की जोरू एक दुधमुहे बच्चे को छोड़ चल बसी है ,तुम चाहो तो अपनी बेटी के लिए उससे बात कर लो।
उसे भी बच्चे की देखभाल के लिए मां की जरूरत है ,तुम्हारी बेटी का घर भी बस जाएगा ,और मंगल खाता कमाता और खुश दिल इंसान है तुम्हारी बेटी का ध्यान भी रखेगा।
यह बात लखन को पसंद आ गई।उसने निश्चय किया कि वह मंगल से मिलने उसके गांव जाएगा।
मंगल के घर पहुंच कर उसने देखा आस पड़ोस की महिलाएं एक नन्ही सी बच्ची की देखभाल कर रही थीं। बिन मां की बच्ची को देख उसका दिल भर आया।
उसने मंगल से अपनी बेटी की शादी की बात की,मंगल से पहले वो पुरनिया चाची ही कहने लगी ,_अरे भैया मंगल अब हां कह दो,सोचो मत।बच्ची की देखभाल अकेले तुम्हारे बस की बात नहीं,हम भी हमेशा तो नहीं देख सकती बच्ची को।फूल सी बिटिया है मां के आने से अच्छी परवरिश हो जाएगी।
मंगल मान गया,जल्दी ही साधारण रीति से मंगल और रूपा का विवाह हो गया।
मंगल अब निश्चिंत हो गया था,अब वो अपना सारा ध्यान  काम पर देने लगा।रूपा ने आकर घर की जिम्मेदारी अच्छे से संभाल लिया।
कुछ ही समय बाद रूपा गर्भवती हुई,और उसने एक बच्ची को जन्म दिया।
अब रूपा का सारा ध्यान अपनी बच्ची पर रहता वो खुशी का एक दम ध्यान नहीं रखती।
इतना तक कि वो खुशी को कभी बच्ची के पास फटकने नहीं देती  ,उसे दुत्कार कर भगा देती।
रूपा अब मंगल का भी सम्मान नहीं करती ,अगर मंगल कुछ खुशी के पक्ष में कह देता तो महाभारत मच जाता।
धीरे  धीरे दोनों बच्चियां बड़ी हो रही थीं।
खुशी से राधा दो साल छोटी थी।खुशी को ही घर का सारा काम करना होता ,।
एक दिन रूपा  ने  मंगल  से  कहा_सुनो जी, राधा का दाखिला स्कूल में करा दो।
मंगल ने कहा_ ठीक है ,कल खुशी और राधा को  मेरे साथ स्कूल भेज देना।
क्यों? आपने सुना नहीं मैंने सिर्फ राधा का ही नाम  लिया है ,गुस्से से आग बबूला होती रूपा ने कहा।
मंगल ने कहा _क्यों खुशी स्कूल नहीं जाएगी?
नहीं ……..रूपा का सपाट जवाब था।
कौन सा उसको पढ़ा लिखा कर शहर भेजना है ,पढ़ लिख लेगी तो कोई ब्याह भी नहीं करेगा ,और दहेज भी ढेर सारा देना होगा।
मंगल  हार कर बोला _, जैसी तुम्हारी मर्जी। मै घर में ही खुशी को  में पढ़ा दिया करूंगा।
रूपा ने राधा को स्कूल  भेजना शुरू किया ,लेकिन राधा को स्कूल जाना पसंद नहीं था,क्योंकि उसका पढ़ने में मन ही नहीं लगता ।
मास्टर की मार से बचने के लिए ,वह अपनी किताब खुशी को देती और कहती तुम पढ़ कर मेरा गृह कार्य कर दिया करो।
खुशी उसका गृह कार्य करती तो राधा  अगले दिन स्कूल जाती।
धीरे धीरे खुशी पढ़कर जानकार हो गई ,मंगल बहुत खुश था।
गांव में सालाना मेला लग था,राधा और रूपा दोनों मेला देखने गईं।
मेले में एक से एक बढ़िया चीजें आईं थी।राधा ने खूब खरीददारी की ,खूब झूला झूला  ,जलेबियां ,  दोनों  ने  चाट टिक्की खाई ।
अब देर होने लगी तो दोनों मेले से घर के लिए वापस लौटने लगीं।
तभी उनकी नजर  एक बुढ़िया पर पड़ी जो  अपने  गिरे हुए सामान को बटोर रही थी।
रूपा और राधा ने देखा ,बुढ़िया के पास सुंदर सुंदर कठपुतियां थीं और उसी के बीच एक  आइना था ।वह आईना बहुत ही  सुंदर था वह पूरी तरह धूल से सना  था , लेकिन उसके किनारे  किनारे हीरे मोती जड़े थे,जिसे देख रूपा की आंखें चौंधिया गई।
बुढ़िया ने लाचार नजरों से उन्हें देखा ,ये सोच कर की वे दोनों सामान उठाने में  उसकी मदद कर देंगी ।
पर दोनों की नजरें तो उसी आईने में लगी थी।तभी एक दयनीय आवाज उनकी कानों में गूंजी।
बिटिया मेरा सामान उठवा दो ,मुझसे झुका नहीं जा रहा।
राधा ने कहा _हम क्यों उठाएं तुम्हारा सामान ? क्या तुम हमारी दादी लगती हो ,और हंस पड़ी।
रूपा ने आगे दांव फेंका _देखो माई ,हम तुम्हारा सामान उठवा देंगे ,बशर्ते तुम्हें ये आइना देना पड़ेगा।
बुढ़िया हंस पड़ी_ले लेना।
रूपा जल्दी जल्दी उसका सामान रखने लगी ,मन ही मन सोच रही थी ,इतना सुंदर आइना वो भी मुफ्त।इसमें जड़े हीरे मोती निकाल लूंगी वाह कितना मजा आयेगा।
बुढ़िया ने आइना दे दिया  और आगे जाकर कोने में बैठ गई।
रूपा जल्दी जल्दी आईने से धूल हटाने लगी ,आईने से धूल हटते ही ,ये क्या? 
वह आईने के अंदर ही कैद हो गई।राधा घबरा गई उसने भी आइना जो नीचे गिर गया ,उठाया वो भी उसके अंदर चली गई ।
दोनों आईने के अंदर से  बचाओ बचाओ चिल्ला रही थीं।
ये सब वहीं एक गुब्बारे वाला खड़ा देख रहा था।वह डर के ओट में छिप गया ।तभी उसने देखा ,बुढ़िया कोने से उठी और मुस्कुराते हुए आईना उठाया और खेतों की ओर गायब हो गई।
क्रमशः
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