एक खाकी टोपी है सिर पर”एक  कंधे पर खाकी थैला”
कितने सपनो की गठरी, ले घर घर भटके डाक वाला “! 
कुछ चिट्ठी लिऐ, कुशलता की, कुछ बच्चों की किलकारी की”
कुछ माँ बापू की कुशलक्षेम, कुछ बातें खेत खलिहानों की!! 
कुछ सरहद पर है शूरवीर, लिखते यादों और सपनो को”
माँ की ममता के आंचल को, धरती माँ से तुलना करते! 
कही नवयौवना  प्रेयसी को, अपने सपनो मे बुनते “
कही हरी चूडियाँ सुहागन की, अपने शब्दों में सुनते!! 
कही परदेशी का विरह प्रेम, कही मिलन जुदाई की बातें “
उस एक पन्ने की चिट्ठी मे, कितनी होती थी भरपाई! 
महिनों इंतजार करके, आंखे जब थक जाती “
तब एक सुहागन की चिट्ठी, डकिया बाबू से मिल पाती!! 
रीमा ठाकुर लेखिका 
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश
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