कड़कती ठंड में गर्म चाय।
देखकर सबका जी ललचाए।
लाख धन्यवाद बनानेवाले की।
पास तक पहुंचानेवाले की।
अगर चाय संग हो गर्म पकौड़े।
फिर तो खुशी से दिल करे धमा चौकड़े।
क्या गृहलक्ष्मी को नसीब होती ऐसी चाय।
कोई और बनाकर पास उसके लाए।
इस ठंड में वह चाय पर चाय बनाती।
फिर वापस पतीली-प्याली धोती।
अगर चाय बनाने की बारी ना हो सकती।
खतम गृहणी की लाचारी ना हो सकती।
तो मानों उसका दिल से आभार।
हर घूंट के साथ दो उसको प्यार।
चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।