नीरजा को आज फिर अपने पुराने दिनों की याद आ गई l उसने घर से बाहर जाने के लिए चौखट की ओर कदम बढ़ाया ही था कि पीछे से उसकी सास ने आवाज़ दी -” सिर पर पल्ला रख, नीरजा l” उसने मुड़कर देखा और गर्दन झुकाते हुए,लम्बा पल्ला निकाल कर सिर ढक लिया  और सास से बाहर जाने की अनुमति माँगी  पर जब देखा कि वे फ़ोन पर बात कर रही हैं तो वहीं पर खड़ी हो l उनकी बात खत्म होने की प्रतीक्षा करने लगी l
 उसे आज भी याद है, दीपक से वह पहली मुलाक़ात जिसने उसके दिल पर पहली बार दस्तक़ दी थी l दीपक का व्यक्तित्व उसे उसके खुले विचारों के कारण ही तो पसंद आया था l
विवाह उपरांत उसे आगे पढ़ने की स्वीकृति दी गई थी जिसके कारण  ही उसने दीपक से शादी करने का फैसला लिया था l
परंतु तब वह यह नहीं जानती थी कि परिवार के सदस्यों द्वारा हर दिन अकारण छोटी-छोटी बातों पर संस्कारों की परीक्षा, धैर्य की परीक्षा, इच्छाओं की परीक्षा, मान-सम्मान की परीक्षाओं में  वह उलझ कर रह जाएगी और अपने पढ़ने की बात को भूलाकर कब आगे बढ़ जाएगी l इसकी भनक भी उसे नहीं लगी l
इस बात का अहसास उसे तब हुआ जब उसने अपनी सास को अपनी बहन से कहते सुना- शिक्षिका बनाना होता तो मेरे सास-ससुर मेरी पढ़ाई बीच में न छुड़वाते l दीपक के बाबूजी तो इतना चाहते थे कि मुझे आगे पढ़ाये पर इनकी अपने परिवार के सदस्यों की इच्छाओं के आगे एक ना चली l घर के कामों में मेरी ख़ुद की इच्छाएँ किताबों में ही सिमट गईं और किसी का ध्यान तक न गया l
शादी के बाद ये तो घर-घर की कहानी हो जाती है कि अपनी इच्छाएँ कब पूरे परिवार की इच्छाओं की भेंट चढ़ जाती हैं l स्त्री को इस बात का पता ही नहीं चलता l परन्तु मैं नीरजा के साथ ऐसा नहीं होने दूँगी l उसकी अस्मिता खोने नहीं दूँगी l मैंने दीपक के बाबूजी से सलाह करके एक कामवाली रखने का मन बना लिया है l यह सुनकर नीरजा हैरान हो गई l
उसे याद आया कि दीपक एक बार उससे कहा था- “माँ थोड़ी सख्त हैं l परिवार के हर सदस्य की ख़ुशी का ख़्याल रखती हैं परन्तु रीति-रिवाजों की पक्की हैं l” तब वह सोच में पड़ गई थी और काफ़ी देर तक दीपक की बात का उसके दिमाग में घूमती रही पर उसने उसे टिपिकल सास बोलकर नज़रअंदाज़ कर दिया l
 आज उसे अपने वहीं शब्द याद आए और  उसकी आँखे छलक आईं l
स्वरचित एवं मौलिक
सुनीता कुमारी अहरी
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