झूंड का ही हिस्सा हू , 
मगर आगे निकलना है, 
मंजिल भी धुधंली सी दिख रही है, 
   रास्ते भी कच्चे है पर इरादा है पक्का, 
वक़्त के साथ बढ़ रही हू, 
दिन का सूरज रात का चादं ही बस देख रही हूँ, 
खुद से जितने का जमाना देख रही हूँ, 
झूंड से निकल कर  अपना आशियाना देख रही हूँ, 
अलग कुछ करना है, सम्मान पाना है, 
     तो भीड़ को पीछे छोड़ना है, 
उस राह को चुनना है जिसे किसी ने चुना नहीं, 
उस हाल मे रहना है जिसमें कोई रहा नही, 
उस पत्थर को तोड़ना है जिसे किसी ने तोड़ा नहीं, 
उस बात को कहना है जिसे किसी ने कहा नहीं, 
झूंड का हिस्सा हू मगर आगे निकलना है। ।
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