आग लगाई गई…
ज्यादातर लोगों ने उसमे
जलती देखी गाड़ियां, भवन
और दुकानें,
कम ही लोग देख पाए 
उन गाड़ियों में
राख होती हुई किसी परिवार की 
रोजी-रोटी,
जलता हुआ
किसी बच्चे का भविष्य,
किसी नौकरी पेशा वाले के
आने-जाने का साधन
और जीवन भर की बचत से
साकार किया गया किसी का सपना,
कम ही लोग देख पाए
उन भवनों में
राख होती हुई न जाने कितने लोगों की
जमा पूंजी,
नष्ट होता किसी परिवार के
सिर के ऊपर छत होने का
इत्मीनान 
और सबसे जरूरी
इंसान का इंसान पर से उठता,
धुंआ-धुंआ होता विश्वास,
ज्यादातर लोगों ने देखा
आग लगाकर 
तबाही मचाने वालों को,
कम ही लोग देख पाए
परदे के पीछे से
उस आग के लिए नफरती तरकीबों 
एवं जलावन का
प्रबंध करने वालों को,
जलती हुई आग में 
घी डालकर उसे और भी ज्यादा 
भड़काने वालों को
और ऐसी गतिविधियों में संलिप्त
अपराधियों को कानून के
चंगुल से बचाकर
किसी धर्म अथवा जाति विशेष का हीरो
बनाने वालों को।
                                 जितेन्द्र ‘कबीर’
                                 
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम – जितेन्द्र ‘कबीर’
संप्रति – अध्यापक
पता – जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
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