जोश में खोकर होश तुमने, हाय यह क्या कर डाला।
बैठा है जिस डाली पर तु, तुमने उसी को काट डाला।।
जोश में खोकर होश———————-।।
यह तो तेरा था घर अपना, देता था जो तुझको पनाह।
तुमने लगाकर इसमें आग, बेघर खुद को कर डाला।।
जोश में खोकर होश———————–।।
माना किसी से तू था नाराज, बुराई तेरी कल करने पर।
दिखलाने को ताकत तुमने, किसी मासूम को रौंद डाला।।
जोश में खोकर होश———————–।।
पाना था अगर तुमको मंजिल, राहों में थे अगर नश्तर।
देखा नहीं उनमें फूलों को, गुस्से में उनको तोड़ डाला।।
जोश में खोकर होश———————-।।
आती है जवानी जगाने को, कहती नहीं राह भटकने को।
करके इसका घमण्ड तुमने, बदनाम खुद को कर डाला।।
जोश में खोकर होश———————-।।
अब हाथ जोड़ता है क्यों तू , औरों से मदद चाहने को।
खूब मौज उड़ाई जवानी में, बर्बाद भविष्य कर डाला।।
जोश में खोकर होश———————।।
साहित्यकार एवम शिक्षक –
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)