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यह कैसी जुदाई है
भर आंखों में आंसू एक मां गर्व से मुस्कुराई है
लिपट के तिरंगे से उसके लाल की आज शव घर में आई है
देख बाबा ने उसके गर्व से अपनी छाती फूलाई है
बिछड़ रहा है वो लाल उनसे जिसे रख कंधे पर उन्होंने ये दुनिया दिखाई है
यह कैसी जुदाई है
सौंप दिया था जिसे पहले ही भारत मां के चरणों में
उस भाई का उसका छोटा भाई कर रहा अंतिम विदाई है
और सात फेरों में बंद कर साथ जन्मों तक
साथ निभाने की जिसने कसम खाई है
उस वीर वधू ने आज अपने सर से लाल चुनर हटाई है
पर होने न दिया लज्जित उसने उसके बलिदान को
अपनी कोख में पल रहे बच्चे को भी भारत मां को समर्पित करने की आश जगाई है
यह कैसी जुदाई है
सब कुछ खोकर भी उस परिवार ने
मातृभूमि से अपनी प्रीत ना भूलाई है
अपने अपने दर्द को रख अपने सीने में
सब ने एक दूसरे की आश बनधाई है
हो रही है विदाई उस वीर की
जिसने अपनो के खातिर अपनी जान लुटाई है
जाने ये कैसी जुदाई है
तड़प भरी है सब के सीनो ने मगर
सब ने गर्व से मुस्कुरा के अंतिम पुष्प चढ़ाई है
कर नमन उस वीर को
भारत मां ने भी अपनी बाहें फैलाई है
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रचनाकार :- (प्रांशु गुप्ता)
रायगढ़ छत्तीसगढ़