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गांव – गांव और शहर-शहर से गुजरा एक बटोही।
चलता जाये ,गाता जाये, मैं मुहब्बत का राही ।।
जी.आज़ाद मुसाफिर भाई, जी.आज़ाद मुसाफिर भाई।
गाँव गाँव और शहर शहर से——–।।
भाई मेरा शरणागत जो रहता था जन्नत में।
कुछ दिन वहाँ गुजारे मैंने, गोया पंछी हाजत में ।।
ताईद करता हूँ भाभी की, ममता की है मूरत।
फकत उसी की तारीफ से मैं, मुहब्बत का इलाही।।
जी.आज़ाद मुसाफिर भाई, जी.आज़ाद मुसाफिर भाई।
गांव गांव और शहर शहर से——–।।
बचपन में एक सपना देखा,बनना है मुझे डॉक्टर।
मुफ़लिस का मर्ज दूर करूंगा, रहमी दिल मैं बनकर।।
बेजा एक तुफान ने आकर,कर दिया मुझको घायल।
फकत उसी की सोहबत से मैं, मुहब्बत का रुजाई ।।
जी.आज़ाद मुसाफिर भाई, जी.आज़ाद मुसाफिर भाई।
गाँव गाँव और शहर शहर से——–।।
नाहक,दीवाना और शायर, आकर यहाँ मैं हो गया।
खूबसूरत एक हसीन फूल का,आशिक दिल से हो गया।।
लेकिन मुझको छोड़ गया वह, करके मेरी बदनामी।
फिर भी नहीं है उससे नफरत, मैं मुहब्बत का वफाई।।
जी.आज़ाद मुसाफिर भाई, जी.आज़ाद मुसाफिर भाई।
गांव गांव और शहर शहर से——–।।
रचनाकार एवं लेखक- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
जिला- बारां(राजस्थान)
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